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जैनाचार और अहिंसा
२१९ कोई फल विशेष खायेगा, जैसे आनन्द ने सिर्फ क्षीरामलक अर्थात् दुधिया आंवला खाने का वचन ग्रहण किया था।
४. अभ्यंगन विधि-मालिश के काम में आनेवाले तेलों को परिमाणित करना । जैसे आनन्द ने कहा था कि, मैं सिर्फ शतपाक तथा सहस्रपाक नामक तेल का सेवन करूंगा।
५. उद्वर्तन विधि-उबटनों की मर्यादा निश्चित करना, जैसे आनन्द ने केवल गेहूँ के आटे आदि से बने हुए उबटन को काम में लाने की प्रतिज्ञा की।
६. स्नानविधि-स्नान आदि के लिये पानी की मात्रा निश्चित करना, जैसे आनन्द ने कहा था कि मैं केवल आठ औष्ट्रिक ( ऊंट के आकार का ) घड़ों का उपयोग करूंगा।
७. वस्त्रविधि-वस्त्रों को परिमाणित करना, जैसे आनन्द ने कपास के बने हुए सिर्फ दो कपड़ों के अलावा अन्य सभी वस्त्रों का त्याग किया था।
८. विलेपन विधि-शरीर में लेप करने की वस्तुओं को मर्यादित करना, जैसे आनन्द ने सिर्फ अगुरु, कुंकुम, चन्दन आदि को स्वीकार करके अन्य सभी प्रकार के लेपों का परित्याग किया।
९. पुष्पविधि-पुष्पों के प्रयोग पर नियंत्रण लाना, जैसे आनन्द ने केवल श्वेतकमल तथा मालती के फूलों की माला को काम में लाने का वचन लिया।
१. उपासकदशांग सूत्र, प्रथम अध्ययन, सूत्र २४.
२५.
२६.
६. नन्नत्य अगरुकुकुमचंदणमादिएहिं, अवसेसं विलेवण विहिं पच्चक्खामि ॥ २९॥
-उपा० प्र० अ० ७. नन्नत्य एगेणं सुद्धपउमेणं, मालइ कुसुमदामेणं वा, अवसेसं
पुप्फविहिं पच्चक्खामि ॥ -उपा० प्र० अ०, पृष्ठ ३७.
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