Book Title: Jain Dharma me Ahimsa
Author(s): Basistha Narayan Sinha
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 242
________________ जैनाचार और अहिंसा २२३ २. सचित्तप्रतिबद्धाहार - उन पदार्थों को खाना, जिनके साथ जीव सटे हुए हों । ३. अपक्वौषधि भक्षणता - कच्ची वनस्पति खाना, जैसे शाक, फल आदि । ४. दुष्पक्वौषधिभक्षणता वैसी वनस्पति ग्रहण करना, जो पूर्णतः पकी न हो । ५. तुच्छौषधिभक्षणता - अर्थात् कच्ची मूंगफली आदि ग्रहण करना ।" कर्म-सम्बन्धी इस व्रत के जितने अतिचार हैं, उन्हें कर्मादान कहते हैं । कर्मादान उन कार्यों या व्यापारों को कहते हैं, जिनसे ज्ञानावरणादि कर्मों का बन्ध होता है । इन कार्यों से अत्यधिक हिंसा होती है, इसलिये श्रावकों के लिए ये त्याज्य हैं । इनकी संख्या पन्द्रह है : २ १. इंगालकम्मे ( अंगारकर्म ) - कोयले बनाना यानी खान से कोयला निकालना और तैयार करना, ईंट पकाना, भट्टा चलाना आदि । जिसमें आग तथा कोयला अधिक मात्रा में काम में आए । २. वणकम्मे ( वनकर्म ) - जंगल-संबंधी व्यापार अर्थात् लकड़ी काटकर बेचना, गांव या शहर बसाने के उद्देश्य से वनों को काटदेना या उनमें आग लगा देना 1 १. तयाणंतरं च णं उपभोग- परिभोगे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा - भोयणओ, कम्मओ य, तत्थ णं भोयणाओ समणोवासरणं पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहां - सचित्ताहारे सचित्तपडिबद्धाहारे, अप्पउलिओस हि भक्खणया, दुप्पउलिओस हिभक्खण्या तुच्छो सहिभक्खणया । - उपा० सू० प्र० अ०, पृष्ठ ६५. २. कम्मओ णं समणोवासएणं पण्णरसं कम्मादाणाई जाणियव्वाई, न समायरियव्वाहं तं जहा इंगाल- कम्मे, वरण-कम्मे, साड़ीकम्मे, भाडीकम्मे फोडी-कम्मे, दंत-वाणिज्जे, लक्ख-वाणिज्जे, रस-वाणिज्जे, विस-वाणिज्जे, केस - वाणिज्जे, जंत- पीलण कम्मे, निल्लंछण-कम्मे दवग्गि-दावण्या, सरदहतलायसोसणया, असई - जण -पोसणया । - उपा० सू० प्र० अ०, पृष्ठ ६६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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