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२.०८
जैन धर्म में अहिंसा यह ध्यानपूर्वक सोचना चाहिये कि यह अग्राह्य है और उतना ही ग्रहण किया जाय जो कि मात्र रोग दूर करने में सहायक हो तथा दाता को भी विश्वास हो कि यह वस्तु रोग दूर करने के निमित्त ली जा रही है, रस-लोलुपता से नहीं । इतना ही नहीं बल्कि रोगी के लिये चोरी से या वशीकरण मंत्र के द्वारा भी अभीप्सित औषधि लेना दोषपूर्ण नहीं समझा जाता था।
१ निशीथचू० गा० १९७० २" गा० ३४८७
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