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जैन धर्म में अहिंसा
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५२. अभअ - अभय : यह संसार के सभी प्राणियों को अभय प्रदान करती है, इसके कारण इसे अभय भी कहते हैं ।
५३. अमाघाअ - अमाघात : किसी भी प्राणी का घातरूप न होने से यह अमाघात वा अमारि कहलाती है ।
५४. चोख - चोक्षा : अहिंसा पवित्र वस्तुओं में भी पवित्र समझी जाती है, अतः इसका नामकरण चोक्षा भी होता है ।
५५. पवित्ता - पवित्रा: पवित्र भावना का संचार करती है इसलिए इसे पवित्रा कहते हैं ।
५६. सुई - शुचि : अहिंसा भावशुचि यानी भावशुद्धता का कारण है अतः यह शुचि कहलाती है ।
५७. पूया - पूजा अथवा पूता - पवित्रा: यह पवित्र है तथा भाव - पूजा है अतः इसे पूजा या पूता कहा जाता है ।
५८. विमल - अहिंसा मिथ्यात्व तथा अविरति आदि मलों से रहित है, इसलिये इसे विमल कहते हैं ( घासीलालजी )
५९. पभासा – प्रभासा - प्रकाश : यह केवलज्ञानरूप ज्योतिस्वरूप होने से प्रकाशरूप है । इसलिये इसे प्रभास कहते हैं ।
५२. अभय - सर्वप्राणिगणस्य निर्भयत्वं, ५३. अमाघातः अमारिः (ज्ञानवि०सूरि), सव्वरसवि अमाघाओ सर्वस्यापि सकलप्राणिगणस्य अमाघातःमा-लक्ष्मीः, सा च द्वेधा धनलक्ष्मीः प्राणलक्ष्मीश्च तस्या घातो हननं माघातो. नमाघातो अमाघातः- अमारिः स्वपदद्वारा प्राणिनां प्राणत्राणकरणात् (घा० ), ५४ चोक्षा - पवित्रा पवित्रादपि पवित्रा एकार्थशब्दद्वयोपादानात् अत्यथं पवित्रा अथवा ५५ पविवत् वज्रवत् त्रायते इति पवित्रा (ज्ञा०वि० सू०), आत्मनैर्मल हेतुत्वात् (घा० ) ५६. शुचिः- भावशौचरूपा आह च...., ५७. पूता पवित्रा पूजा वा भावतो देवताया अर्चनं ५८ - ५६. विमल: प्रभासा च तन्निबन्धनत्वात्, ( शा०वि० ) मिथ्यात्वाविरत्यादिमलवर्जिततत्वात् (५८, घा०ला० ) ; प्रकाशरूपा केवलज्ञानज्योतीरूपत्वात्, सर्वप्राणिनां सुखप्रकाशकत्वाच्च ५९, घा०ला० ),
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