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जैन धर्म में अहिंसा
३. दाता की विशेषता - दाता के दिल में देनेवाले के प्रति श्रद्धा हो तथा वस्तु त्याग देने के बाद उसके प्रति दाता के मन में किसी प्रकार असूयाभाव न जगे, कोई विषाद न हो । साथ ही दान करने के बाद दाता किसी फल की आकांक्षा न करे ।
४. पात्र की विशेषता - दान लेनेवाला व्यक्ति सम्यग दर्शन, ज्ञान, चारित्रादि को धारण करनेवाला तथा सदा सत्पुरुषार्थ के लिए जागरूक रहनेवाला हो ।
दान के प्रकार :
दान दस प्रकार के होते हैं'
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१. अनुकम्पादान - किसी दीन-दुःखी तथा अनाथ को दया करके जो कुछ भी दानस्वरूप दिया जाता है, उसे अनुकम्पादान कहते हैं ।
२. संग्रहदान - आपत्ति के समय अपनी सहायता के उद्देश्य से दूसरे को जो कुछ दिया जाता है, वह संग्रहदान कहलाता है । इसमें दाता का स्वार्थ निहित होता है। ऐसे दान से मुक्ति की प्राप्ति नहीं होती ।
३. भयदान - राजा, मंत्री, पुरोहित, राक्षस, पिशाच आदि के डर से दान करना भयदान कहलाता है ।
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४ कारुण्यदान – पुत्र, पिता आदि प्रियजनों की मृत्यु से शोक पैदा होता है, करुणा होती है, वैसी स्थिति में पुत्र आदि के नाम से कुछ दान कर देना ही कारुण्यदान कहलाता है ।
५. लज्जादान लज्जावश जो दान दिया जाय वह लज्जादान होता है । किसी छोटी या बड़ी सभा में बैठे हुए व्यक्ति से कोई याचक याचना कर देता है तब वास्तव में देने की इच्छा न होने पर भी व्यक्ति
१. दसविहे दाणे प० तं०
अणुकंपा १ संग २ चेव भये ३ कालुणितेति य ४ लज्जाते ५ गारवेणं च ६ अहम्मे उण सत्तमे ७ धम्मे त अट्ठमे वृत्त ८ काहीति त ६ कर्तति त १० ॥ - स्थानांग सूत्र, अ०१०, उद्द े० ३, सूत्र ७४५..
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