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जैन धर्म में अहिंसा
किसी-किसी ने दान के चार प्रकार ही माने हैं - ज्ञानदान, अभयदान, धर्मोपकरणदान तथा अनुकम्पादान | पढ़ाना, तथा पढ़ने पढ़ाने वालों की सहायता करना ज्ञानदान है । भयभीत प्राणी को दुःख से मुक्त करना अभयदान है । छः काय के आरंभ से रहित पंचमहाव्रतों का पालन करनेवाले साधुओं को दान देना धर्मोपकरणदान कहा जाता है | अनुकम्पा के विषय में तो हमलोगों ने पहले वाले वर्गीकरण में जानकारी की ही है ।' इन सब में अभयदान श्रेष्ठ है |
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दान, धर्म के चार प्रकारों में से एक है। धर्म के चार प्रकार हैं१. दान, २. शील, ३. तप तथा ४. भावना । स्व और पर के हित के लिए उस व्यक्ति को जिसे आवश्यकता है, जो दिया जाता है वह दान कहलाता है ।
दान के कई प्रकार होते हैं जैसा कि हमलोगों ने अभी-अभी देखा है - अनुकम्पादान, ज्ञानदान आदि, और इनको पालना ही दान-धर्म होता है । इसकी विशेषता निम्नलिखित शब्दों से स्पष्ट हो जाती है
दान के प्रभाव से धन्नाजी और शालिभद्रजी ने अखूट लक्ष्मी पाई और भोग भोगे । शालिभद्रजी सर्वार्थसिद्धि से आकर सिद्धि (मोक्ष) पावेंगे और धन्नाजी तो सिद्ध हो चुके । यह जानकर प्रत्येक व्यक्ति को सुपात्रदान आदि दानधर्म का सेवन करना चाहिए । '
तृणमणिमुक्तेभ्यो यद्दानं दीयते सुपात्रेभ्यः । अक्षय मतुलमनन्तं तद्दानं भवति धर्माय ॥ शतशः कृतोपकारो दत्तं च सहस्रशो ममानेन । अहमपि ददामि किंचित्प्रत्युपकाराय तद्दानम् ॥
जैन सिद्धान्त बोल संग्रह - सं० भैरोदान सेठिया, भाग ३, पृष्ठ ४५०.
१. जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, भाग १, बोल १९७, पृष्ठ १५६ - १५७.
२. सूत्रकृतांग. प्रथम त्रुतस्कंध, अ० ६, गाथा २३.
३. श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, भाग १, बोल १९६, पृष्ठ १५४-१५५.
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