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जैन धर्म में अहिंसा
अहिंसा:
अहिंसा का सही-सही अवलोकन निम्नप्रकारेण हो सकता है
अहिंसा के विभिन्न नाम-प्रश्नव्याकरण सूत्र में अहिंसा के साठ नाम मिलते हैं। इन नामों का सम्बन्ध भाषागत व्युत्पत्ति के आधार पर नहीं बल्कि इनके अर्थ एवं कार्य के आधार पर है। इस ग्रन्थ के मूल में तो मात्र इन नामों को चर्चा या गिनती मिलती है, किन्तु ज्ञानविमलसूरिजी, घासीलालजी आदि इसके व्याख्याकारों ने इन नामों की सार्थकता पर प्रकाश डाला है जो इस प्रकार है
१. निव्वाण--निर्वाण--मोक्ष : अहिंसा को निर्वाण की संज्ञा दी
जाती है क्योंकि यह निर्वाण यानी मोक्ष का कारण
होती है या यों कहें कि यह मोक्षदायिनी होती है। . २. निव्वई-निवृति-स्वास्थ्य : निर्वृति यानी स्वास्थ्य की प्राप्ति
तब होती है जब कर्मों का आत्यंतिक अभाव हो जाता है और यह स्वस्थता की स्थिति मन की प्रसन्नता, निश्चिन्तता तथा दुःखों की पूर्ण निर्वृति की स्थिति होती है जोकि पूर्णरूपेण अहिंसा पर ही आधारित
होती है । अतः अहिंसा को निर्वृति कहा जाता है। ३ समाही-समाधि-समता : चूंकि अहिंसा समता का कारण
होती है अत: इसे समाधिरूप कहा जाता है, क्योंकि
कारण में कार्य निहित होता है । ४. संती-शान्ति : शान्ति वहीं होती है जहाँ पर द्रोह का अभाव
होता है और अहिंसा के साथ द्रोह बिल्कुल नहीं होता, अत: इसे शान्ति कहते हैं यानी यह शान्तिप्रदायिनी होती है।
१. १. निर्वाणं मोक्षस्तद्धेतुत्वात्, २. निर्वृति: स्वास्थ्यं दुर्व्यानरहितत्वात्,
३. समाधि: समताशक्तिकारणात्, ४. शान्ति: परद्रोहविरतिः,
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