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जैन दृष्टि से अहिंसा
१७५. ५. कित्ती-कीर्ति-यश : अहिंसा के पथ पर चलनेवाले लोग सन्त,
महात्मा, महापुरुष आदि नामों से सम्बोधित होते हैं, वे सनप्रिय एवं पूज्य होते हैं, उनकी कीर्तिध्वजा आकाश को छती है, अर्थात अहिंसा से यश की प्राप्ति होती है। अतः अहिंसा का एक नाम
कीर्ति भी है। ६. कंती-कान्ति-प्रसन्नता : अहिंसा को कान्ति कहते हैं क्योंकि
यह कान्ति, तेज, प्रताप, सौन्दर्य एवं शोभा प्रदान
करती है। ७. रइय ( रई )-रति : आनन्ददायिनी होने के कारण अहिंसा
रति कहलाती है। ८. विरइय (विरई)-विरति-विराग : यह सावद्य कर्मों से विराग
पैदा करती है, अतः इसे विरति कहते हैं। ६. सुयंग-श्रुतांग : यह श्रुतांग कहलाती है, कारण श्रुत ही इसके
.. अंग हैं यानी श्रुतज्ञान ही इसका आधार है। १०. तित्ती-तृप्ति-संतोष : इससे सभी प्राणियों को सन्तोष की
उपलब्धि होती है यानी यह सन्तोष का कारण है ।
अतः इसे तृप्ति नाम से भी सम्बोधित करते हैं। ११. दया-प्राणिरक्षा : इसके कारण सभी जीवों की प्राणरक्षा
होती हैं, इसलिए इसे दया भी कहते हैं। १२. विमुत्ती-विमुक्ति-मुक्ति : अहिंसा संसार के सभी वध एवं
बन्धनों से मुक्ति दिलानेवाली होती है, अतः इसे
विमुक्ति कहते हैं। १३. खंती-क्षान्ति : यह क्रोधादि समस्त कषायों का निग्रह करने
वाली है, इस वजह से इसे क्षान्ति कहते हैं । ५. कीतियश: ख्यातिः, ६. कान्तिः शोभाकारणत्वात्, ७. रतिःसर्वेषां रागहेतुत्वात्, ८.. विरतिनिवृतिः, ६-१०. श्रुतं श्रुतज्ञानं तदेव अंग कारणं यस्याः सा 'पढमं नाणं तमो दया' इति पाठात्, तृप्तिः सन्तोषस्तस्य हेतुत्वात् तृप्तिः, ११. दया देहिरक्षा, १२. विमुच्यते प्राणी सकलवषबन्धनेभ्यो यया सा विभुक्तिः, १३. क्रोधनिग्रहः तज्जनिताऽहिंसाऽपि,
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