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अहिंसा-संबंधी जैन साहित्य
११६ आगे चलकर क्षमा के आदि स्रोत तथा इससे (क्षमा से) मिलनेवाले फल को फिर निम्नलिखित शब्दों में स्पष्ट किया गया है--
___ "क्रोध पर विजय प्राप्त करने का क्या फल है ? क्रोध से क्षमा गुण की प्राप्ति होती है, क्रोधजन्य कर्मों का बन्ध नहीं होता और पूर्वबद्ध कर्म क्षय हो जाते हैं।"
अध्ययन बत्तीस में राग और द्वेष को हिंसा का कारण बताते हुए यह भी दिखाया गया है कि किस प्रकार अलग-अलग इन्द्रियों का हिंसा-अहिंसा से अलग-अलग सम्बन्ध है। ____ आँखों का सम्बन्ध रूप से होता है, इसलिए जो रूप सुन्दर होता है, वह राग पैदा करता है और जो रूप सुन्दर नहीं है, वह द्वेष पैदा करता है। अतः जो सरूप या कुरूप में समभाव रखते हैं वे वीतरागी होते हैं। किन्तु जो रूप (सुरूप) की आशा में पड़ जाता है वह जीव त्रस और स्थावर जीवों को कष्ट पहुँचाता है, उनकी हिंसा करता है।
कानों का संबंध शब्द से है अतएव प्रिय शब्द राग और अप्रिय शब्द द्वेष के कारण बन जाते हैं। शब्द (प्रिय शब्द) की आशा करनेवाला अनेक जीवों को परिताप देता है; उनकी हिंसा करता
घ्राण का विषय गन्ध है इसलिए सुगन्ध से राग और दुर्गन्ध से द्वेष पैदा होता है। वीतरागी दोनों में समता का भाव रखते हैं।
१. सूत्र ६७. २. चक्खुस्स एवं गहरणं वयंति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु।
तं दोसहेउप्रमणुन्नमाहुं समो य जो तेसु स वीयरागो ॥२२॥ रूवाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ गरूवे ।। चित्तेहि ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्टगुरु किलिट्ठ ॥२७॥ सहस्स सोयं गहणं वयंति सोयस्स सदं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेउ अमणुन्नमाहु ॥३६॥ सहाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ गरूवे । चित्तेहि ते परियावेइ बाले पीलेई प्रत्तगुरु किलिट्ठे ॥४०॥
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