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अहिंसा-संबंधी जैन साहित्य
११७ अध्ययन बीस यह बताता है कि अनगार वही होता है, जो क्षमावान, दमितेन्द्रिय तथा निरारंभी होता है और जो इस अनगार प्रवज्या को धारण कर लेता है वह अपने और पराये सभी पर समान भाव रखता है।"
अध्ययन इक्कीस में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह ये पांच महाव्रत हैं । अतः सभी प्राणियों पर दया करने वाले, कठोरतापूर्ण बातों को सहनेवाले, क्षमावान, संयमी, ब्रह्मचर्य धारण करनेवाले, समाधिस्थ होनेवाले एवं इन्द्रियों पर अपना अधिकार रखनेवाले मुनि को सब प्रकार के सावध योगों को त्यागकर विचरना चाहिए ।
अध्ययन बाईस में राजा अरिष्टनेमि की प्रसिद्ध कथा है, जिनके मन में, अपनी शादी में काटेजाने के लिए बँधे हुए अनेक . पशुओं की चित्कार सुनकर विराग पैदा हो गया। उन्होंने ऐसा सोचकर कि मेरी वजह से इतने पशुओं का काटा जाना मेरे लिए परलोक में बहुत ही अहितकर होगा, पशुओं को बन्धन से मुक्त करवा दिया और स्वयं मुनिव्रत को धारण किया। उनके मुनि बनने की खबर पाकर उनकी होनेवाली भार्या कुमारी राजीमती भी मुनिव्रत को धारण करके साध्वी बन गई । ३
अध्ययन पचीस में जयघोष नामक एक अनगार और विजयघोष नामक एक वैदिक याज्ञिक में हुए वार्तालाप को प्रस्तुत किया गया
१. सूत्र ३१, ३२, ३५. २. अहिंस सच्चं च अतेणगं च तत्तो य बंभं अपरिग्गहं च ।
पडिवज्जिया पंच महव्वयारिण, चरिज्ज धम्म जिणदेसियं विदु ॥१२।। सव्वेहि भूएहिं दयाणुकंपी खंतिक्खमे संजय बंभयारी।
सावज्ज जोगं परिवज्जयंतो चरिज्ज भिक्खू सुसमाहि इंदिए ॥१३॥ ३. सोऊण तस्स वयणं बहुपारिणविणासणं ।।
चितेइ से महापण्णे साणुक्कोसे जिएहिउ ॥१८॥ जइ मज्झ कारण एए हम्मति सुबहू जिया। न मे एयं तु णिस्सेसं परलोगे भविस्सई ॥१६॥
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