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जैन दृष्टि से हिंसा
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जैन दृष्टिकोण से ये सब जातियाँ हिंसा में प्रवृत्ति तथा प्रेम रखनेवाली हैं । यद्यपि वर्तमान काल में इनमें से अधिकतर के नाम तथा स्थान पाना मुश्किल है, हो सकता है इनके नामादि बदल गये हों और समयानुसार इनके आचार-विचार में अन्तर आ गये हों। हो सकता है प्रश्नव्याकरण सूत्र की रचना के समय ये सभी जातियाँ विद्यमान रही हों। अभी भी बहुत सी ऐसी जातियां मिलती हैं जिनका जीवन निर्वाह पशु-पक्षियों की हिंसा पर ही होता है, कारण, वे मांसादि खुद ही खाते हैं और चर्म आदि बेंचकर अन्य आर्थिक समस्याओं का समाधान कर लेते हैं ।
हिंसा के फल :
किसी भी कर्म का फल अवश्य ही होता है, चाहे वह सुफल हो या कुफल | वैसे ही हिंसा के भी फल होते हैं जिन्हें निम्नलिखित शब्दों में आचारांग में प्रस्तुत किया गया है
उरिया यविदंसगपासहत्था
हत्था हरिएसा वरणचरगा लुद्धगामहुधाया पोयघाया एणीयारा परणीयारा सरदह दीहिय-तलाग- पल्लगपरिगाला - मलण सोतबंधरण सलिलासय सोसगा विसगरस्स य दायगा उत्तरगवल्लरदवग्गिणिद्दयपलोवका कूरकम्मकारी ॥ २१ ॥
इमेयया, बहवे मिलक्खुजाई के ते ? सक-जवरण-सबर- बब्बर- कायमुरुंडो-द-भडग- तित्तिय पक्करिणय कुलवख-गोड- सिंहल - पारस-कोचंध-दविलविल्लल - पुलिंद- प्ररोस - डोंब - गंधहारग- बहलिय- जल्ल-रोम मास- ब उस मलयाचुचुया-य चूलियग- कों करणग करणग- सेय- मेया- पण्हव-मालव-महुर-आभासिय-प्ररणक्ख-चीण-लासिय खस-खासिया-ने ठुर-मरह्ट्ठ- मुट्ठि - प्रारबडोबिलग कुहरण - केकय-हरण - रोमग- रुरु- मरुया-चिलाय विसयवासी पावमइरणों ||२२|| जलयर थलयर-सणप्फय- मोरंग - खहयर - संडास तोंड - जीवोवघायजीवी सण्णी य असणणो पज्जतो अपज्जत्रो य-प्रसुभलेस्स परिणमे एए अण्णे य एवमाई करेंति पारणाइवायकरणं । पावा पावाभिगमा: पावमई पावरुई पाणवहकयरई पाणवहरूवाणुद्वारा पाणवह कहासु अभिरमन्ता तुट्ठा पावं करेत्तु हुतिय बहुप्पगारं ||२३||
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प्रश्नव्याकरण सूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, श्राश्रवद्वार, अध्ययन १.
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