________________
जैन धर्म में अहिंसा
मरकर चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के हेमाभ नरकावास में यावत् नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ'' अर्थात् युद्ध में दूसरों को मारते हुए मरने के कारण कालकुमार नरक का भागी हुआ।
उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है कि अज्ञानी, हिंसक, मषावादी, लुटेरे, महारम्भी, मांसभक्षक आदि उसी प्रकार नरकायु का इन्तजार करते हैं, जिस प्रकारं बकरा पालनेवाला मेहमान का इन्तजार करता है । क्रोध करने से जीव नरक में जाता है तथा मान, क्रोध, प्रमाद आदि से शिक्षा प्राप्त नहीं होती। वे ब्राह्मण जिनमें क्रोध, मान, हिंसा, मषा आदि हैं जाति और विद्या से हीन होते हैं। कुश, यूप, तृण, काष्ठ और अग्नि तथा प्रात:काल, सायंकाल जल का स्पर्श करके प्राणियों का घात करना पाप का संचय करता है। हिंसा करनेवाला लेश्या का परिणामी होता है।
प्रवचनसार में हिंसा के फल पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि जो राग, द्वेष भावों के वशीभूत हो स्वजीव तथा परजीव का १. त एय खलु गोयमा ! काले कुमारे एरिसएहिं प्रारंभेहि जाव एरिसएणं
असुभकडकम्मपन्भारेणं कालमासे कालकिच्चा चउत्थीए पंकपभाए पुढवीए हेमा नरए जाव नेरइयत्ताए उववन्नो ॥१०६॥ अध्ययन १. हिंसे बाले मसावाई प्रद्धाणम्मि विलोवए ॥५॥ मुंजनाणे सुरं मंसं परिवूढे परंदमे ॥६॥ प्रयकक्करभोई य तुंदिल्ले चियलोहिए । पाउयं णरए कंखे जहाएसं व एलए ॥७॥ अध्ययन ७ तथा अध्ययन ६, सूत्र ५४; अध्ययन ११, सूत्र ३. कोहो य माणो य वहो य जेसि मोसं प्रदत्त च परिग्गह च । ते माहणा जाइविज्जाविहूणा ताई तु खेत्ताइ सुपावयाई ॥१४॥ प्र. १२. कुसं च जूवं सणकट्ठमग्गिं सायं च पायं उदगं फुसंता। पाणाइ भूयाइ विहेडयंता मुज्जो वि मंदा पगरे पावं ॥३६॥ प्र. १२. तथा अध्ययन ३४, सूत्र २१, २२, २८.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org