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जैन दृष्टि से अहिंसा
प्रश्नव्याकरण सूत्र में हिंसा के फल के विषय में कहा गया है कि हिंसा के फल को न जानने वाले व्यक्ति हिंसा करके महाभयवाली, दीर्घकाल तक कष्टों से परिपूर्ण, विश्रामरहित, विभिन्न पीड़ाओं से भरी हुई नरक और तिर्यञ्च योनि को बढ़ाते हैं, यानी पाप कर्म ( हिंसा ) के फलस्वरूप वे नरक और तिर्यञ्च गति को प्राप्त करते हैं तथा अनेक प्रकार की यातनाएं सहते हैं।'
उपासकदशांग सूत्र के आठवें अध्ययन में महाशतक नायापति तथा उनकी पत्नी रेवती की कथा में रेवती का चरित्र बहुत कर और कामोत्तेजक दिखाया गया है। वह अपने सुख के निमित्त गाथापति को अन्य बारह पत्नियों की हत्या शस्त्र तथा विष का प्रयोग करके करती है । जब नगर में हिंसा बन्द करने का आदेश घोषित होता है तब वह अपने मायके से प्रतिदिन दो बछड़े मँगवाने और उन्हें मारकर खाने लगती है। अपने पति को बहत प्रकार के कामोत्तेजक व्यवहारों से तंग करती है। इन सब कारणों के फलस्वरूप उसे नरक जाना पड़ता है । उसके पति उससे क्रुद्ध होकर कहते हैं
तू सात दिन के अन्दर अलस रोग से पीड़ित होकर कष्ट भोगती हुई मर जायेगी और लोलुपाच्युत नरक में उत्पन्न होगी; वहाँ ८४ हजार वर्ष की आयु प्राप्त करेगी।
निरयावलिका में गौतम के पूछने पर कालकुमार के विषय में कहते हैं--'कालकुमार ऐसे आरंभकर ( युद्ध करते हुए मरकर ) यावत् ऐसे अशुभ दुष्कृत्य कर्म के भार से भारी हुआ मृत्यु के समय १. तस्सय पावस्स फलविवागं प्रयाएमाणावड्ढंति महन्भयं अविस्सा
मवेयरणं दोहकालबहुदुक्खसंकर्ड गरपतिरिक्खजोणिं ॥२४॥ प्रश्नव्याकरण सूत्र, प्र० श्रु०, पाथ वद्वार, प्रथम अध्ययन तथा अंतिम सूत्र भी देखें।
२. तएवं सा रेवई गाहावइणो अंतो सत्त-रत्तस्स अनसएवं वाहिता
अभिभूया अठ-दुइट्ठ-असत्या कालमारे कालं किच्चा इमाम रयणप्पाए पुढवोए लोलुप जुए नरए चउरासीइ-वास-सहस्स-हिइएतु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ना ॥२५३॥
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