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जैन दृष्टि से अहिंसा
१५५ युग्य--छोटी गाड़ी, जम्पान विशेष; अट्टालग--अट्टालकअट्टालिका; चरिका-नगर और कोट के मध्य का मार्ग; द्वार-द्वार; गोउर-गोपुर- नगर का बड़ा दरवाजा; फलिहा-परिघा; आलगअर्गला बेड़ा; जंत-यंत्र--यानी पानी आदि निकालने के लिए बना हआ अरघघट आदि; शूलिया--शूलिका--शूलारोपण काष्ठ; लउड-- लगुड़--लकुट, लाठी; मुसंडि--मुसंडी--शस्त्र विशेष ( बन्दूक ); सयग्घी--शतघ्नी--शस्त्र विशेष जिससे एक ही बार में सौ व्यक्ति मारे जा सकते हैं (तोप आदि); बहुपहरणा--अनेक प्रहरण--बहुत प्रकार के शस्त्रादि--खंग, तोमर, तीर आदि; वरणुक्खण्णकएविभिन्न प्रकार के गह-उपकरण आदि । इस प्रकार के अनेक कारणों से प्रमादी तथा अज्ञानी लोग वनस्पतिकाय जीवों की हिंसा करते हैं।
त्रसकाय-जो महामूर्ख हैं तथा दयाहीन भी हैं, वे ऊपर कथित तथा अन्य प्रकारों से जीव को मारते हैं। वे क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, वैदिक क्रियाओं के अनुष्ठान के लिए, जीवन, काम, अर्थ, धर्म आदि के लिए स्वतन्त्र, परतंत्र, प्रयोजनवश, निष्प्रयोजन विभिन्न अवस्थाओं में एवं विभिन्न प्रकारों से त्रस तथा स्थावर प्राणियों का घात करते हैं। हिंसा के स्तर : ___ हिंसा होती है, इसमें तीन चीजें प्रधान समझी जाती हैं - १. हिंस्य यानी जिसकी हिंसा होती है, २. हिंसक जो हिंसा करता है
और ३. हिंसा होने के कारण । अत: इन तीनों पर विचार करने से यह सही-सही जाना जा सकता है कि हिंसा के स्तर भी होते हैं अथवा नहीं।
हिंसा किसी जीव की होती है । जैन दृष्टिकोण से जीव छः प्रकार के होते हैं : पृथ्वीकाय, अप्काय, अग्निकाय, वनस्पतिकाय, वायुकाय और त्रसकाय। चकि जीव सभी में है, अतः किसी की भी हिंसा हो, चाहे वह पृथ्वीकाय या वनस्पतिकाय या त्रसकाय हो हिंसा बराबर ही होगी, ऐसा मत तेरहपंथी श्वेताम्बर मतानुयायियों का है। किन्तु जीव सभी बराबर हैं ऐसा नहीं कहा जा सकता। क्योंकि एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक जीव होते हैं।
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