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जैन धर्म में अहिंसा
अप्काय-मज्जण - स्नान;
पाण - पान; भोयण -- भोजन बनाना; वत्थधोवण -- कपड़े धोना तथा सोयमइएहि -- शौच आदि कार्यों में अकाय की हिंसा होती है ।
अग्निकाय - पयण -- भोजन पकाना; पयावण -- पकवाना, जलावण – जलाना और विदंसणेहि-- -- प्रकाश के लिए ।
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वायुकाय - सुप्प -- सूप से अन्नादि साफ करना; वियण - हवा करना पंखे से; तालपंट - ताल के पंखे से ; पेहुण -- मोर के पंख से; मुह--मुख; करयल - - हाथ; सागपत्त -- शाकवृक्ष के पत्ते से और वत्थमाइएहि -- वस्त्रादि से वायु के जीवों की हिंसा होती है ।
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वनस्पतिकाय - अगार - घर बनाना; पटियार - खेती या बगीचे की रक्षा के लिए बाड़ बनाना, या परिचार - जीविका; भक्खभोयण - खाने के लिए भोजन आदि बनाना; सयण - शयन; आसणआसन; फलग फलक- -काष्ठनिर्मित वस्तु; मूसल - धान कूटने का मूसल ; उक्खल - ऊखल; तत - वीणा ; वितत - वितत - नगारा आदि; आतोज्ज - आतोद्य, ढोल आदि; वहण - वहन - पोत, नौका आदि यान पात्र ; मंडव - मण्डप ; विविह भवण - विविध भवन; तोरण - तोरण ; विटंग - विटंक - कबूतर रखना; देवकुल — देवस्थान; जालयझरोखा ; अद्धचंद -- अर्द्धचन्द्रकार की बारी, सोपान विशेष; णिज्जूहग — नियू हक — द्वार के उर्ध्वभाग में बाहर की ओर लगे हुए घोड़ा आदि के आकार का काष्ठ विशेष; चंदसालिय-चन्द्रशाला – प्रासाद के ऊपर की शाला; वेतिय ( वेइय ) - वेदिका; णिस्सेणि निःश्रेणी- निसेनी-सीढ़ी; दोणि-छोटी नौका; चंगेरी - तृणादि से बना हुआ पात्र; खील - कील - खूटी; मेढक — खम्भा; सभा - सभा; पवा - प्रपा– प्याऊ; आवसह - आवसथमठ-तापसाश्रम; गंध - गंध; मल्ल - मालादि; अनुलेवणं - अनुलेपन चंदन आदि; अंबर - अम्बर - वस्त्र; वरयुग, युग - झूसरा - जुवारी; गंगल - लांगल - हल या हल की कील; मेइय - मेतिक – मेड़ा, वरवरजोते गये खेत की मिट्टी को बराबर करने के निमित्त बनी हुई पटिया; कुलिय - कूलिक - हल विशेष - बीज बोने के लिए हल में बँधी हुई नी । संदण - स्पंदन - एक प्रकार का रथ; सीया - शिबिका पालकी; रह—- रथ; सगड़ – शकट — गाड़ी; यान - वाहन; जोग्ग
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