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जैनेतर परम्परागों में अहिंसा यहूदी धर्म-साहित्य के प्राचीन धर्मग्रन्थ (Old Testament) के पांच विभाग, जिन्हें पेन्टाच्यच ( Pentateuch ) की संज्ञा दी गई है, प्रधान हैं। उनमें न मात्र सामाजिक नियम ही हैं, बल्कि इतिहास, काव्य एवं दर्शन के भी विभिन्न रूप मिलते हैं। सर्व प्रथम मोजेज के द्वारा रचित नियम की पुस्तक का पाठ एक प्रसिद्ध पंडित एज्रा । Ezra) ने ईसा पूर्व ४४४ में किया था। मोजेज के द्वारा प्रतिपादित धार्मिक नियमों की ख्याति आज भी दस धर्मादेश ( Ten Commandments ) के रूप में देखी जाती है। इनमें से छठा आदेश है-किसी को मत मारो। इतना ही नहीं बल्कि आगे सातवें से दसवें तक क्रमशः कहा गया है-व्यभिचार मत करो, चोरी मत करो, पड़ोसी के खिलाफ गलत धारणा मत बनाओ एवं पड़ोसी की स्त्री, नौकर, नौकरानी, बैल, गधे आदि को लोलुपता की दष्टि से कभी भी न देखो।' इन नियमों को देखते हए ऐसा कहा जा सकता है कि यहूदी परम्परा में अहिंसा के निषेधात्मक एवं विधेयात्मक दोनों ही रूपों पर प्रकाश डाला गया है।
खासतौर से बन्धत्व के भाव को यहदी धर्म में विभिन्न प्रकारेण विवेचित किया गया है। इसमें कहा गया है-बन्धत्व का प्रेम जाति एवं धर्म की सीमाओं से ऊपर है, इसलिए अपने पड़ोसी को प्यार करो, उसके प्रति मन में घणा का भाव मत रखो, न प्रतिकार का विचार मन में लाओ और न उससे ईर्षा ही करो। जब भाईचारे का भाव मन में स्थापित हो जाता है तो सहज ही घणा का भाव दूर हो जाता है। सभी लोग एक ही पिता के पुत्र हैं ऐसा समझकर सबसे प्यार करो। पड़ोसी से प्यार करना ही सबसे बड़ा न्याय है और पड़ोसियों या साथियों से घृणा करना ईश्वर से घृणा करना है। अतएव, यदि तुम्हारा भाई -पड़ोसी निर्धन है, पतन की अवस्था में है तो उसे गरीबी से मुक्त करो, यदि वह कोई आगन्तुक या प्रवासी ही है तो क्या; वह तुम्हारे साथ रह सकता है। तुम अपने पड़ोसियों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जैसा कि तुम स्वयं अपने प्रति चाहते हो । उनके साथ वाचिक रूप से भी गलत 1. G. W. R., p. 147.
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