________________
११२
जैन धर्म में महिसा
बताया गया है कि श्रावक को संलेखना व्रत धारण कर लेने के बाद उस मत्य या तथ्यपूर्ण बात को भी किसी से नहीं कहना चाहिए जो अनिष्ट को सूचित करती हो अथवा अप्रिय हो । इसका प्रत्यक्ष उदाहरण महाशतक के जीवन में मिलता है । अपनी पत्नी रेवती के द्वारा शृंगार भरी बातें करने पर वह क्रोधित होकर अपने अवधि ज्ञान के आधार पर यह भविष्यवाणी करता है कि सात दिनों के बाद उसकी मृत्यु होगी और वह नरक में जायेगी तथा ८४ हजार वर्षों तक वहाँ दुःख भोगेगी । जिस समय महाशतक ने ऐसी घोषणा की वह संलेखना की स्थिति में था । अतएव महावीर ने गौतम को भेजकर उसे अपने किये कर्म की आलोचना तथा प्रायश्चित्त करने को आदेश दिया, और महाशतक ने प्रायश्चित्त क्रिया । " उपासक दशांग में श्रावकों के आचरण एवं व्रतों की पूर्ण विवेचना मिलती है जिसमें अहिंसा को सब तरह से प्रधानता मिली है ।
प्रश्नव्याकरण :
प्रश्नव्याकरण का अर्थ है - स्वसमय- स्वसिद्धान्त और परसमयअन्य सिद्धान्त संबंधी प्रश्नोत्तर के रूप में नाना विद्याओं, मन्त्र-तन्त्र एवं दार्शनिक बातों का निरूपण । पर इस व्युत्पत्ति के अनुसार स्थानांग तथा इस श्रुतांग में विषय-विवेचन का अभाव है । नंदी सूत्र में भी प्रश्नव्याकरण का परिचय मिलता है लेकिन वर्तमान में प्राप्त प्रश्नव्याकरण उससे बिल्कुल भिन्न है। अभी इसमें दस अध्ययन मिलते हैं जिनमें से प्रथम पांच में क्रमश: हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पांच पापों या आस्रवद्वारों के वर्णन हैं तथा शेष पांच में क्रमश: अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्यं तथा अपरिग्रह इन पांच व्रतों या संवरों के वर्णन मिलते हैं ।
इसके प्रथम अध्ययन के प्रारम्भ में ही सुधर्मा स्वामी ने जम्बू स्वामी से कहा है कि अब प्राणिवध का स्वरूप, नाम, फल तथा
१. सूत्र २३६ - २६१.
२. प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास -- डा० नेमिचन्द्र शास्त्री, पृष्ठ १७८०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org