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जैनेतर परम्परामों में अहिंसा तया सन् ६०१-६२३ ई० है। कोज़िकी को जापानियों का बाइबल 'The Bible of the Japanese' कहते हैं । इसकी भाषा जापानी एवं चीनी मिश्रित है।'
शिन्तो धर्म के मठ आदि में सरलता को प्रमुखता दी गई है। इसके कर्मकाण्ड में कोई जटिलता नहीं दिखाई पड़ती। इसमें पूजन आदि के समय किए गए अर्पण को सम्मान का रूप दिया गया है और जो चीजें देवों को अर्पित करने की समझी जाती हैं वे हैं-चावल, रोटी, फल, शाक-भाजी, सामुद्रिक वनस्पति, सूअर के बच्चे, खरगोश तथा चिड़ियों का मांस । इससे लगता है कि पूजा-पाठ में मांसादि के व्यवहार को शिन्तो-परम्परा में गलत नहीं समझा गया
बाद के दिए गए धर्मादेश इस प्रकार हैं : १. ईश्वरी इच्छा का उल्लंघन न करो। २. अपने पितृजन के प्रति अपनी कृतज्ञता को न भूलो। ३. राज्य-शासन का विरोध न करो। ४. देवों के उदार सद्गुणों को न भूलो जिनसे आपदाएँ दूर होती
हैं, बीमारी नष्ट होती है।। ५. यह भी नहीं भूलो कि संसार एक परिवार है । ६. अपनी शक्ति का सही अन्दाज करो। ७. दूसरों के क्रोधित हो जाने के बावजूद भी तुम स्वयं क्रोधित
न हो। ८. काम में आलस्य मत करो। ६. धर्मोपदेशों पर दोषारोषण मत करो। १० विदेशी धर्मोपदेशों के प्रभाव में मत आओ।'
इन उपदेशों में यह कहा गया है कि यह संसार एक परिवार है। जब संसार को कोई व्यक्ति परिवार के रूप में देखता है तब इसका
1. Ibid; Vide also, pp. 15-16, 2. G. W. R., p. 278, ३. G. W. R, p. 280.
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