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द्वितीय अध्याय अहिंसा-सम्बन्धी जैन साहित्य
जैन साहित्य के दो भेद किये जा सकते हैं-(१) महावीर के पहले का साहित्य एवं (२) महावीर से बाद का साहित्य । महावीर से पूर्व जो जैन साहित्य था, वह अभी उपलब्ध नहीं है किन्तु उसके प्रमाण मिलते हैं। इसमें कोई शंका की गुंजाइश भी नहीं दीखती कि महावीर से पहले जैन-साहित्य था, क्योंकि महावीर से पहले भी तीर्थंकर हो चुके हैं और उनके विचारों से भी हम परिचित हैं । चूँकि उस साहित्य का निर्माण महावीर से पूर्व हुआ, अतः वह 'पूर्व' नाम से ही सम्बोधित हुआ और उसका समावेश दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग में हुआ। पूर्व चौदह थे।'
महावीर से बाद का साहित्य वह है जिसमें महावीर के प्रवचन या सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये हैं। महावीर ने अपने धार्मिक या दार्शनिक सिद्धान्तों को न तो संकलित किया और न कोई साहित्यिक रूप ही उन्हें दिया। किन्तु उनके शिष्यों तथा अन्य आचार्यों ने उनके उपदेशों को संकलित करके उन्हें एक साहित्यिक रूप दिया और इसी आधार पर. उस साहित्य को दो विभागों में विभाजित किया जाता है-(१) अंग-प्रविष्ट जिनकी रचना (संकलन) गणधर यानी महावीर के शिष्यों के द्वारा हुई, (२) अंगबाह्य जिनकी रचना अन्य आचार्यों के द्वारा हुई। किन्तु समय की दौड़ में धीरेधीरे वह साहित्य लुप्त होने लगा, तब जैन श्रमणों ने तीन बार महासम्मेलन करके उसे फिर से संकलित किया तथा मिटने से बचाया।
१. भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान-डा. हीरालाल जैन,
पृष्ठ ५१, ५२.
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