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जैन धर्म में अहिंसा मतलब होता है कि वह सभी लोगों को अपने भाई-बन्धु के रूप में देखता है, फिर तो न कोई ईल या द्वेष हो सकता है और न हिंसा ही । इससे भी आगे बढ़कर क्रोध को रोकने के लिए आदेश दिया गया है। भले ही कोई दूसरा नाराज हो जाए लेकिन स्वयं नाराज न होना चाहिए। यहाँ भी हिंसा की जड़ पर कुठाराघात किया गया है।
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