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जैनेतर परम्परामों में अहिंसा मदिरापान ( drinking ), ईर्षा (envy), चापलूसी (lattery), लालच ( greed ), पाखण्ड ( hypocrisy ), असत्य ( lying ), कृपणता ( miserliness ), अभिमान ( pride), कलङ्क ( slandering ), आत्म-हत्या ( suicide ), अधिक व्याज लेना ( usury ), हिंसा ( violence ), उच्छृखलता (wickedness), युद्ध ( warfare), हानिप्रद कर्म ( wrong-doings ) आदि को हमेशा ही त्याज्य समझा है और ठीक इसके विपरीत भाईचारा ( brotherhood ), दान (charity), स्वच्छता (cleanliness), ब्रह्मचर्य (chastity ), क्षमा ( forgiveness ), मैत्री ( friendship ), कृतज्ञता ( gratitude ), विनम्रता ( humility ), न्याय (justice ), दया ( kindness ), श्रम ( labour ), उदारता ( liberality ), प्रेम ( love ), कृपा ( mercy ), संयम ( moderation ), सुशीलता (modesty), पड़ोसीपन का भाव ( neighbourliness ), हृदय की शुद्धता ( purity of heart ), सदाचार ( righteousness), धैर्य (steadfastness), सत्य ( truth ), विश्वास ( trust ) को ग्रहण करने का उपदेश दिया गया है।'
इससे साफ जाहिर होता है कि इस्लाम-परम्परा ने उन तत्त्वों की अवहेलना की है जिनसे हिंसाभाव की उत्पत्ति या वृद्धि होती है और उन तत्वों को अपनाया है जिनसे अहिंसाभाव की पुष्टि होती है एवं अहिंसा सिद्धान्त का विकास होता है । ___ दान देने के सिद्धान्त को स्पष्ट करते हुए कुरान में कहा गया है कि दान तो तब सही रूप लेता है जब कोई बिना किसी हिचकिचाहट के या बिना किसी को कोई कष्ट दिए ही किसी को कुछ देता है । यदि दान देने में किसी प्रकार की परेशानी ली गई या महसूस की गई तो उससे कहीं ज्यादा अच्छा है कि किसी से मधुर संभाषण किया जाए तथा उसके प्रति क्षमा भाव रखा जाए, कारण, खुदा स्वयं धन, वैभव का सर्वोच्च अधिष्ठाता होते हुए भी सरल 1. G. W. R., p. 203.
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