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जैन धर्म में अहिंसा व्यवहार न करो। अपने संगी-साथियों की किसी भी प्रकार की सेवा करना सुकर्म या सुकृति है।' ___ इस प्रकार यहूदी धर्म ने मानवता के प्रति सम्मान, ईमानदारी, ब्रह्मचर्य, सत्य, भक्ति आदि को ईश्वर के प्रति प्रेम या विश्वास के परिचायकों में स्थान दिया है। क्योंकि ये सब सदाचार हैं। इसके विपरीत क्रोध, विलास, गरीब, कमजोर, विधवा स्त्री एवं अनाथ बच्चों को सताना, व्यापार में बेईमानी, लाभ के लिए नीच आचरण को अपनाना, कर्जदारों के प्रति रुष्टता प्रदर्शित करना आदि दुराचार हैं। यहाँ तक कि दया और प्रेम को इसमें ईश्वर का ही रूप माना गया है। ___ इस प्रकार यहूदी परम्परा का अहिंसा-सिद्धान्त अपने विधेयात्मक रूप में प्रेम और दया को प्रधानता देता है। कारण, यहूदी लोग मिश्र के द्वारा पराजित होने के बाद से स्वतंत्रता के पहले तक गरीबी का जीवन व्यतीत करते रहे और आपस के संगठन के आधार पर ही मोजेज ने उन्हें स्वतंत्रता प्रदान की। इसी वजह से दया और प्रेम ( संगठन ) को कायम रखना उनके लिए अनिवार्य भी था। ईसाई-परम्परा :
ईसाई-परम्परा के जन्मदाता महात्मा ईसा मसीह थे, जिनके नाम से ईस्वी सन् प्रचलित है। उनका आविर्भाव आज से प्रायः १९७१ वर्ष पूर्व गैलिली के नाजरेथ शहर में हआ था। उनकी माता का नाम मेरी और प्रतिपालक पिता का नाम जोसेफ था। जीवन के प्रारम्भ में महात्मा मसीह ने, जिनका घरेलू नाम जेसस था, अपने वंशगत व्यवसाय बढ़ईगिरी की ओर हाथ बढ़ाया, किन्तु बाद में पैलेस्टाइन के एक प्रसिद्ध संस्कार प्रतिपादक जॉन के विचारों से प्रभावित होकर धार्मिक एवं दार्शनिक क्षेत्र में प्रवेश किया। उनकी मातृभाषा हेब्रयु मिश्रित सिरियन थी, जिसमें मौखिक रूप 1. G. W. R., p. 157. 2. Ibid., p. 158.
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