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जैनेतर परम्पराओं में श्रहिंसा
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अनुसार कहीं-कहीं हिंसा को क्षम्य भी मान लिया है, जैसे दवा स्वरूप चर्बी और खून का प्रयोग । इसके अलावा भिक्षुओं के द्वारा गृहस्थों से भिक्षास्वरूप मांस का भी ले लेना अहिंसा - सिद्धान्त की दृढ़ता में कुछ कमी - सी ला देता है, यद्यपि गृहस्थों की सुविधा का ध्यान रखते हुए यह विधान किया गया है ।
सिक्ख - परम्परा :
सिक्ख परम्परा का प्रारम्भ सिक्ख धर्म के साथ होता है, जो संसार का एक नया धर्म है । यद्यपि इसने अपने से प्राचीन धर्मों की विभिन्न विशेषताएँ ग्रहण की हैं, इसने मानव कल्याण
को महत्त्व देते हुए अपने को संकीर्ण भावनाओं एवं अन्धविश्वासों से काफी दूर रखा है । इसमें दस धर्म - पथ-प्रदर्शक हो गए हैं जिन्हें गुरु विशेषण से सम्मानित एवं सम्बोधित किया जाता है ।
सिक्ख धर्म का सबसे प्रसिद्ध धर्मग्रन्थ 'श्री गुरुग्रन्थ साहब' है, जिसमें गुरु नानक, गुरु अङ्गद, गुरु अमरदास, गुरु रामदास, गुरु अर्जुनदेव एवं तेज बहादुर के उपदेशों के साथ-साथ रामानन्द, कबीर, रविदास, नामदेव, शेख फरीद, जयदेव, सूरदास, पीपा, धन्ना, सैण, त्रिलोचन, परमानन्द, वेणी, भीखन आदि के भक्तिकाव्य संकलित हैं । गुरु गोविन्द सिंह की हिन्दी, पंजाबी तथा फारसी भाषाओं में प्रस्तुत की गई रचनाएँ जिस ग्रन्थ में संगृहीत हैं उसे दसमग्रन्थ कहते हैं । उसमें जाप, अकाल-स्तुति, वचित्रनाटक, ज्ञान प्रबोध, जफरनामा आदि प्रसिद्ध रचनाएँ हैं । भाई नन्दलाल, भाई देशा सिंह, भाई प्रह्लाद सिंह आदि के रहितनामे एवं प्रेमसुमार्ग, सर्वलोहग्रंथ, जन्मसाखी, पन्थप्रकाश, गुरु-विकास आदि भी सिक्ख साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं ।
सिक्ख धर्म में मुक्ति के चार मार्ग दिखाएं गए हैं - ( १ ) कर्म मार्ग ( २ ) योग मार्ग ( ३ ) ज्ञान मार्ग एवं (४) भक्ति मार्ग । कर्म को विश्लेषित करते हुए इसे दो विभागों में विभाजित किया गया है - बन्धनप्रद कर्म और मोक्षप्रद कर्म । बन्धनप्रद कर्म में कर्मकाण्डयुक्त कर्म, अहंकार कर्म और मेंग्रणी कर्म आते हैं । मोक्ष
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