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जैनेतर परम्पराओं में अहिंसा
पारसी परम्परा :
पारसी परम्परा के जन्मदाता महर्षि जरथुस्त्र हो गए हैं, जिन्हें ग्रीक लोगों ने जोरोष्टर के नाम से सम्बोधित किया है । उनका जन्म ईसा पूर्व दसवीं शती में ईरान के राजा कइ - पिशतस्प के शासन काल में हुआ था, किन्तु आधुनिक इतिहासज्ञों के मत में उनका आविर्भाव ईसा पूर्व दसवीं शती से ई० पू० छठी शती के बीच में हुआ था । उनके जन्म के विषय में भी विद्वानों के बीच मतैक्य नहीं है, लेकिन उनके कर्म-स्थानों में बैक्ट्रिया, पूर्ण मेडिया, ईरान और परसिया के नाम आते हैं । चूँकि महात्मा जरथुस्त्र के द्वारा चलाई गई धार्मिक परम्परा का सबसे ज्यादा प्रसार परसिया में हुआ था, अत: उसे पारसी परम्परा के नाम से जाना जाता है । इसका सबसे प्रसिद्ध धर्मग्रन्थ 'अवेस्ता' है, जिसके सम्बन्ध में ऐसी धार्मिक धारणा है कि इस धर्म के सर्वोच्च एवं सर्वशक्तिमान आराध्य अहुरामज़दा ने स्वयं अपने हाथों से उसे जरथुस्त्र को दिया था ।
अवेस्ता के अनुसार आदमी के प्रधानतः तीन कर्त्तव्य होते
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१. अपने शत्रु को मित्र बना लेना ।
२. दानव को मानव बनाना या दानवी प्रवृत्ति रखने वालों के भीतर मानवी प्रवृत्ति भर देना ।
३. अज्ञानी को ज्ञानी बनाना ।
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शत्रु को मित्र बनाना निःसन्देह अहिंसा के सिद्धान्त पर आधारित है । शत्रु के साथ यदि हिंसाजनक व्यवहार होगा तो कभी भी वह मित्र नहीं बन सकता । लेकिन शत्रु को किसी प्रकार का कष्ट न देते हुए उसके प्रति प्यार व्यक्त करना, सद्भाव प्रकट करना अहिंसा की परिधि के ही अन्दर आता है । प्यार एवं सद्भाव व्यक्त करने के वजाय यदि कोई अपने शत्रु के प्रति वैर-भाव व्यक्त करता है और अहितकर व्यवहार करता है तो उसे हिंसक कहना ही पड़ेगा । जरथुस्त्र ने स्वयं कहा है कि जो व्यक्ति किसी के 1. Glimpses of World Religions, p. 130.
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