________________
७७
जैनेतर परम्परात्रों में अहिंसा "नानक नाम चढ़दी कला ।
तेरे भाणे सवत का भला ।' 'सवत का भला' का अर्थ होता है सबकी भलाई, जो अहिंसा के सिद्धान्त को अपनाए बिना हो ही नहीं सकती। अहिंसा और सबकी भलाई ये दोनो तो वैसे ही हैं जैसे एक सिक्के के दोनों रुख । जब तक दूसरों के हित की बात ध्यान में नहीं आएगी तब तक अहिंसा की ओर प्रवृत्ति न होगी और जब तक अहिंसा का भाव मन में नहीं आएगा तब तक दूसरों का उपकार नहीं हो सकता । ये दोनों सिद्धान्त एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। __ आपस के प्रेम भाव को जो अहिंसा की पुष्टि करता है, प्रकाशित करते हुए कहा गया है
"आवहु भणे गलि मिलहि, मेरी अङ्क सहेलड़ि आहि । मिल के करहि कहाणियाँ,
समरथ्य कन्त कीआहि" ॥ (श्री राग )२ प्रेम के सिद्धान्त की महत्ता को ऊँचा उठाते हुए गुरु गोविन्द सिंह कहते हैं
"साच कहहुँ सुनि लेहु सबहि, जिन प्रेम कियो तिनही प्रभु पायो।"
(अकाल स्तुति ) अर्थात् मेरा उद्घोष सब कोई सुन ले कि बिना प्रेम किए हुए कोई व्यक्ति प्रभु या परमात्मा को नहीं प्राप्त कर सकता। और अर्जुनदेव ने तो विश्व को ही अपना समझ रखा है
"ना को वैरी न ही बेगाना, .
सगल सङ्गि हम को बन आई।"४ १. सिक्ख धर्म की रूपरेखा, पृ० १. २. वही, पृ० २. ३. वही, पृ० ३. ४. वही, पृ० २.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org