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जैन धर्म में श्रहिसा
अन्य उपकरणों के बाद शुद्ध मक्खन, पकवान, पशु ( वध ), सोम तथा अग्नि का प्रयोग होना चाहिए ।"
धर्मसूत्रों में जहां एक ओर मांस के उपयोग का विधान करके हिंसा को प्रश्रय दिया गया है वहां दूसरी ओर अहिंसा के सिद्धान्त का भी प्रतिपादन किया गया है। बौधायन के मतानुसार दंड देने के तीन साधनों-मन, वचन और कर्म, में से किसी से भी, संन्यासी को चाहिए कि वह किसी को दण्ड न दे । वशिष्ठ ने कहा है" कष्ट से सभी जीवों की रक्षा करने की प्रतिज्ञा के साथ एक संन्यासी को अपना घर त्याग देना चाहिए । जो संत सभी जीवों के साथ शान्तिपूर्वक विचरण करता है उसे किसी भी जीव-जन्तु से भय नहीं होता । यदि वह जीवों के कष्ट निवारण की प्रतिज्ञा नहीं करता और सभी जन्मे अजन्मे का नाश करता है तथा उपहार ग्रहण करता है तो उसे धार्मिक नियमों से च्युत होने दो किन्तु उसे वेद पढ़ने से वंचित मत होने दो अन्यथा वह शूद्र हो जायेगा । एक संन्यासी को कष्ट देना और दया दिखाना दोनों ही के बीच पूर्णतः तटस्थ होना चाहिए ।" 3 आपस्तम्ब के मत में, ब्राह्मण जो ज्ञानी है और सभी जीवों को अपने में और अपने को सभी जीवों में देखता है, वह स्वर्गगामी होता है। क्रोध, हर्ष, रोष, लोभ, मोह, दम्भ, द्रोह, मृषोद्यम, अध्याशन, परीवाद, असूया, काम, मन्यु, अनात्म-भाव तथा अयोग आदि जीवों के विनाश के कारण हैं । इन सभी से अलग होना ही योग या मुक्ति का साधन है । इतना ही नहीं, इनके अनुसार एक ब्राह्मण ही क्या सभी लोगों को क्रोध, हर्ष, लोभ आदि से बचना चाहिए । जो व्यक्ति इन पवित्र नियमों का पालन करता है वह विश्वव्याप्त आत्मा में प्रवेश पा जाता है । गौतम ने सभी जीवों पर दया, सहिष्णुता, अक्रोध, पवित्रता, शान्ति, १. यज्ञांगेभ्यः भाज्यमाज्याद्भवींषि हविर्भ्यः पशुः पशोस्सोमदाग्नयः ॥ ॥ ११॥
वशिष्ठ धर्मसूत्र, भ० ११, सूत्र ४६.
बौधायन धर्मसूत्र, प्रश्न १, अ०२७.
२. बौधायन धर्मसूत्र, २.६.२५.
३. वशिष्ठ धर्मसूत्र, १०. १ : ४. २६.
४. प्रापस्तम्ब धर्मसूत्र, प्रश्न १, पटल ८, खं० २३, सूत्र १,४-६.
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