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जैनेतर परम्पराओं में श्रहिंसा
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प्रसन्नचित्त तथा राग-द्वेष से विरत मैत्रीपूर्ण जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति सुखमय परमपद यानी निर्वाण को प्राप्त करता है । '
विनय-पिटक - विनय-पिटक में भिक्षु भिक्षुणियों के आचार पर प्रकाश डाला गया है । यानो एक भिक्षु या भिक्षुणी को साधनापूर्ण जीवन यापन करने के निमित्त कौन-कौन से कर्म करने चाहिए तथा कौन-कौन से नहीं ।
" जो भिक्षु जानकर मनुष्य को प्राण से मारे, या (आत्महत्या के लिए ) शस्त्र खोज लाए, या मारने की तारीफ करे, मरने के लिए प्रेरित करे - अरे पुरुष ! तुझे क्या ( है ) इस पापी दुर्जीवन से ? ( तेरे लिए ) जीने से मरना अच्छा है; इस प्रकार के चित्त- विचार से, इस प्रकार के चित्त-संकल्प से अनेक प्रकार से मरने की जो तारीफ करे, या मरने के लिए प्रेरित करे तो वह भिक्षु पाराजिक होता है - ( भिक्षुओं के साथ ) सहवास के अयोग्य होता है ।"२
यदि कोई भिक्षु जमीन खोदे वा खुदवाये, वृक्ष काटे वा कटवाये, जान बूझकर प्राणियों का घात करे, क्रोधित होकर दूसरे भिक्षुओं को पीटे तो इन सभी दोषों या अपराधों के लिए वह पावित्तिय है । 3 ऐसे ही विधान भिक्षुणियों के लिए भी बताए गये हैं ।
१. मेत्ताविहारी यो भिक्खु पसन्नो बुद्ध सासने । अधिगच्छे पदं सन्तं संखारूपसमं सुखं । free frक्खु ! इमं नावं सित्ता ते लहुमेस्सति । छत्वा रागञ्च दोसञ्च ततो निब्बाणमेहिसि ॥१०॥
२. विनय-पिटक, हि० अनु० - राहुल सांकृत्यायन, पृष्ठ ६. ३. वही, पृष्ठ २३.
४. वही, पृष्ठ २४, ४२, ५६, ६१ तथा ६३.
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धम्मपद, भिक्खुवग्गो ।
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