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जैन धर्म में अहिंसा कष्ट होता है उसी प्रकार दूसरे का मांस काटने पर उसे भी पीड़ा होती है, ऐसा विज्ञ पुरुषों को समझना चाहिए । इस भूमण्डल पर आत्मा से अधिक प्रिय कोई भी चीज नहीं है। इसलिए सभी प्राणियों पर दया करनी चाहिए और सबको अपनी ही आत्मा समझनी चाहिए।'
महाभारत में अहिंसा के सिद्धान्त का जितना विकास हुआ है उतना वैदिक परम्परा में अन्यत्र कहीं भी नहीं मिलता। यहां तक कि शान्तिपर्व में ऐसा आदेश दिया गया है कि जिस स्थान पर वेदाध्ययन, यज्ञ, तप, सत्य, इन्द्रिय-संयम एवं अहिंसा-व्रतों का पालन हो वहीं व्यक्ति को रहना चाहिए। इसके साथ होनेवाली सभी शंकाओं एवं गलतियों को दूर करके यह प्रयास किया गया है कि अहिंसा का सिद्धान्त सर्वव्यापी एवं सर्वमान्य हो; यद्यपि क्षत्रियों को या प्राण संकट में पड़े हए व्यक्ति के द्वारा की गई हिंसा को क्षम्य घोषित किया गया है। कुछ बातें विरोधाभास-सी अवश्य लगती हैं, जैसे राजा विचक्षण का यह कहना कि मनु ने यज्ञ में पशुबलि का विधान नहीं किया है, क्योंकि मनुस्मृति में यज्ञ के लिए पशुहिंसा की स्वतंत्रता दी गई है। गीता : ___ श्रीमद्भगवद्गीता यद्यपि महाभारत के भीष्मपव का एक अंश है, परन्तु यह समूचे महाभारत का सार है और इसका अपना एक १. अहिंस्रः सर्वभूतानां यथा माता तथा पिता ।।
एतत् फलमहिंसाया भूयश्च कुरुपुंगव । नहि शक्या गुणा वक्तुमपि वर्षशतैरपि । संछेदनं स्वमांसं यथा संजनयेद् रजम् । तथैव परमांसेऽपि वेदितव्यं विजानता ॥ स्वमांसं परमांसेन यो वर्धायितुमिच्छति ।
उद्विग्नवासं लभते यत्रयत्रोपजायते । अनु० प०, प्र० १४५. २. यत्र वेदाश्च यज्ञाश्च तपः सत्यं दमस्तथा ॥८८il
अहिंसाधर्मसंयुक्ताः प्रचरेयुः सुरोत्तमाः । स वो देश: सेवितव्यो मा वोऽधर्म: पदा स्पृशेत् ॥८६॥
शा० ५०, म० ३४०.
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