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जैन धर्म में अहिंसा निकाय, संयुत्त निकाय, अंगुत्तर निकाय तथा खुद्दक निकाय हैं। खुद्दक निकाय में ही 'धम्मपद' है, जिसमें बुद्ध द्वारा प्रस्तुत उपदेशात्मक ४२३ गाथाएँ संकलित हैं तथा 'जातक' जो बुद्ध के पूर्व जन्मों से सम्बन्धित ५५० कथाओं का संग्रह है, बहत प्रसिद्ध है। इसके अलावा खहक पाठ, उदान, इतिवृत्तक, सुत्तनिपात, विमानवत्थु, पेतवत्थु, थेरगाथा, थेरीगाथा, निद्देस, पटिसम्मिदामग्ग, अवदान, बुद्धवंश तथा चरियापिटक हैं। पातिमोक्ख (भिक्षु एवं भिक्षुणी पातिमोक्ख ), खन्धक तथा परिवार विनयपिटक के तीन विभाग हैं, इनमें से खन्धक महावग्ग और चलवग्ग के रूप में विभाजित होता है । पुग्गलपज्जति, धातुकथा, धम्मसंगणि, विभंग, पठान, पकरण, कथावस्तु तथा यम अभिधम्मपिटक के रूप में सण्होझे जाते हैं । इन सबके अलावा 'मिलिदपम' जिसकी रचना नागसेन ने की थी, को बौद्ध साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
बौद्ध परम्परा में मन, वचन तथा कर्म से अन्य प्राणियों को कष्ट न देने को अहिंसा की संज्ञा दी गई है।' अहिंसा के पथ पर चलने वाला न स्वयं किसी को दु:ख देता है और न किसी अन्य व्यक्ति को इसके लिए प्रेरित करता है,२ वह बड़े-बड़े जीवों को ही नहीं बल्कि एकेन्द्रिय पेड़ पौधों को भी कष्ट नहीं पहँचाता। इसमें अहिंसा को एक अच्छा स्थान मिला है लेकिन इसे वह श्रेष्ठतम स्थान नहीं मिला है जो कि मित्रता को दिया गया है, यद्यपि 'अहिंसा' और 'मित्रता' दोनों ही एक-दूसरे पर आधारित हैं। इसके अनसार जितने भी आचार हैं, भले ही वे एक भिक्ष के लिए हों अथवा एक गहस्थ के लिए, उन सब में मित्रता ही श्रेष्ठ है. जिसे व्यापक ढंग से निभाने के लिए ही अन्य आचार आचरित होते हैं ।
दीघनिकाय-इस निकाय के 'ब्रह्मजाल सत्त' में भिक्षओं को उपदेश देते हुए बुद्ध ने तीन प्रकार के शीलों-आरम्भिक, मध्यम १. संयुत्तनिकाय, हिन्दी अनु०--भिक्षु जगदीश काश्यप तथा भिक्षु धर्म
रक्षित, पहला भाग, पृष्ठ ७१. २. धम्मपद, २५. ६-१०. ३. विनयपिटक, हिन्दी अनुवाद-राहुल सांकृत्यायन, पृष्ठ २०७.
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