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जैनेतर परम्पराओं में प्रहिंसा
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तथा महा की चर्चा की है, जिन्हें अपनाना भिक्षुओं के लिए अत्यन्त आवश्यक समझा है । इन शीलों के अन्तर्गत अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, सत्य, नशे का त्याग आदि को स्थान दिया है ।" अहिंसा
१. प्रारम्भिक शील - भिक्षुनो ! वह छोटा और गौण शील कौन-सा है, जिसके
कारण नाड़ी मेरी प्रशंसा करते हैं ? (वे ये हैं) - श्रमण गौतम जीवहिंसा ( प्राणातिपात ) को छोड़ हिंसा से विरत रहता है । वह दंड और शस्त्र को त्यागकर लज्जावान, दयालु और सब जीवों का हित चाहनेवाला है । श्रमण गौतम चोरी ( श्रदत्तादान ) को छोड़कर चोरी से विरत रहता है । ....... व्यभिचार छोड़कर श्रमण गौतम निकृष्ट स्त्री-संभोग से सर्वथा विरत रहता है ।..... कठोर भाषण को छोड़ श्रमण गौतम कठोर भाषण से विरत रहता है। वह निर्दोष, मधुर, प्रेमपूर्ण, जँचने वाला, शिष्ट और बहुजनप्रिय भाषरण करनेवाला है । भिक्षुस्रो ! अथवा गौतम किसी बीज या प्राणी के नाश करने से विरत रहता है दलाली, ठगी और झूठा सोना-चांदी बनाने ( निकति ) के कुटिल काम से, हाथ-पैर काटने, वध करने, बांधने, लूटने-पीटने और डाका डालने के काम से विरत रहता है ।
श्रमण
मध्यमशील - भिक्षुश्रो ! अथवा अनाड़ी मेरी प्रशंसा इस प्रकार करते हैं- जिस प्रकार कितने श्रमरण और ब्राह्मण ( गृहस्थों के द्वारा ) श्रद्धापूर्वक दिये गये भोजन को खाकर इस प्रकार के सभी बीज श्रीर सभी प्राणी के नाश में लगे रहते हैं, जैसे मूलबीज ( जिनका उगना मूल से होता है), स्कन्धबीज ( जिनका प्ररोह गांठ से होता है, जैसे ईख), फलबीज और पांचवां प्रग्रबीज ( ऊपर से उगता पौधा ) | उस प्रकार श्रमण गौतम बीज और प्राणी का नाश नहीं करता ।
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महाशील - जिस प्रकार कितने श्रमण श्रीर ब्राह्मण श्रद्धापूर्वक दिये गये भोजन को खाकर इस प्रकार की हीन ( नीच ) विद्या से जीवन बिताते हैं, जैसे..... मूषिक-विष, अग्नि-हवन, दर्वी- होम, तुष-होम, करणहोम, तण्डुल • होम, घृत- होम, तैल-होम, मुख में घी लेकर कुल्ले से होम, रुधिर - होम ... श्रमण गौतम इस प्रकार की हीन विद्या से
निन्दित जीवन नहीं बिताता । दीघनिकाय, हिन्दी अनु०रा० सांकृत्यायन तथा ज० काश्यप, पृ० २-३.
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