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जैनेतर परम्पराओं में अहिंसा
पुराण : । पुराणों के समय के विषय में कोई निश्चित :जानकारी नहीं होती। पारजिटर के अनुसार ये प्राचीन एवं मध्यकालीन हिन्दू धर्म ( वैदिक धर्म ) के ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक आदि सभी सिद्धान्तों के विश्वकोश हैं। पर इनका रचना-काल कोई एक नहीं कहा जा सकता, कारण पुराणों की संख्या बहत है, जिनमें से एक-दो तो अति प्राचीन माने जाते हैं यानी महाभारत आदि से भी पूर्व के और कुछ बाद के समझे जाते हैं। सामान्य तौर से वायुपराण को सभी पराणों में प्राचीन माना जाता है, क्योंकि इसकी लेखन-पद्धति अन्य पुराणों की लेखन-पद्धति से भिन्न है। पुराणों में भी अहिंसा-सिद्धान्त को अच्छी तरह प्रकाशित किया गया है। ___ वायुपुराण-इसके अनुसार मन, वाणी एवं कर्म से सभी जीवों के प्रति अहिंसा का पालन करना चाहिए। यदि कोई भिक्षु अनिच्छा से भी किसी पश की हिंसा कर डालता है तो इस दोष या पाप से मुक्ति पाने के लिए प्रायश्चित्त स्वरूप उसे चान्द्रायण आदि कठोर व्रतों को करना चाहिए । यद्यपि, जैसा कि हम लोगों ने देखा है कि अन्य शास्त्रों ने उस हिंसा को क्षम्य माना है जिसमें हिंसक का उद्देश्य हिंसा करना न हो, किन्तु वायुपुराण तो उस व्यक्ति ( खास तौर से भिक्षु, संन्यासी ) को भी महादोषी ठहराता है जो जान-बूझकर नहीं, बल्कि अनजाने या भूल से ही हिंसा कर बैठता है।
1. Pargitar has rightly remarked—“Taken collectively,
they (the Purāpas) may be described as a popular encyclopaedia of ancient and medieval Hinduism, religious, philosophical, historical, personal, social and political” Encyclopaedia of Religion and Ethics, article
on "Purāņa." २. अहिंसा सर्वभूतानां कर्मणामनसागिरा। अकामादपि हिंसेत यदि भिक्षुः . पशून मृगान् । कृच्छातिकृच्छकुर्वीत चान्द्रायणमथापि वा ॥१३॥
वायुपुराण, पूर्वार्ध, अ० १८.
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