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ACARA ASHAARASAA&USUALIZARILANKAUNA प्रकार के मदों का त्याग करता है वही श्रावक कहलाता है । तथा उपर्युक्त कर्तव्यों का पालन करना ही श्रावक धर्म है। सर्वज्ञ, वीतरागी, हितोपदेशी देव कहलाता है। सर्वज्ञ प्रणीत आगम शास्त्र व जिनवाणी है, निर्ग्रन्थ दिगम्बर, वीतरागी साधु गुरू होते हैं। निष्कपट भाव से श्रद्धापूर्वक इनकी आराधना करना तथा जाति, कुल, ज्ञान, ऐश्वर्य, बल, विद्या आदि आठ मदों का त्याग करना श्रावक धर्म है। जो निर्मल भावों से इसका पालन करता है वही धर्मानन्द पाता है ।।४।।
४. (क) मूल धर्मतरोराधा व्रतानां धाम संपदां ।
गुणाना निधि रित्यङ्गिदयाकायां विवेकिभिः ॥ (प. पंच विं.) अर्थ - अहिंसा धर्म रूपी वृक्ष की जड़ है, व्रतों में सबसे पहला व्रत है, सभी सम्पत्तियों का धाम-आयतन है, आत्मिक गुणों का पिटारा-खजाना है अतः विवेकी जनों को अहिंसा की रक्षा के लिए सभी जीवों पर दया करनी चाहिए, कोमल परिणाम बनाये रखना चाहिए। (ख) अहिंसा सर्वश्रेष्ठ धर्म है ऐसा अथर्ववेद से भी ज्ञात होता है -
"ये त्रिषप्ताः परियंति, विश्वरूपाणि विभ्रतः।
वाचस्पति बला तेषां तन्वो अद्य ददातु मे ॥ (अथर्ववेद ऋचा प्रथम)
अन्वयार्थ - (ये) जो विष्णु परम पद को प्राप्त परमात्मा है वह (त्रिषप्ताः) त्रिषु जलस्थलान्तरिक्षेषु सम्बद्धाः- जल, स्थल और आकाश से संबद्ध जो जलचर जीव, थलचर जीव और नभचर जीव हैं तद्रूप (विश्व रूपाणि विभ्रतः) विविध, अनेकानेक प्रकार के रूप को धारण करता हुआ (तेषां तनवः) उन-उन पर्यायगत शरीर वाला (बला) बलवान् श्रेष्ठ (वाचस्पति) वेदवाण्या पालको विद्वान् = वेद की वाणी के रहस्य को समझने वाला उनका पालन करने वाला वाचस्पति है। ये सब विशेषण परमात्मा विष्णु के लिए प्रयुक्त हैं वे विष्णु भगवान् (अद्य मे न हिनस्तु) आज - वर्तमान में मुझे न मारें (किन्तु मां प्रीणयंतु पुण्यातु) अपितु हमारा पालन कर मुझे प्रसन्न करें, सुखी करें।... RREARRAIMERSacasARKESEARNAMATARNATULTURECRAarpur
धममिन्द श्रावकाचार - ४५