Book Title: Dharmanand Shravakachar
Author(s): Mahavirkirti Acharya, Vijayamati Mata
Publisher: Sakal Digambar Jain Samaj Udaipur

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Page 309
________________ AUSRANAN LAUAKASASAKATARZEALAATUAANDAMARANA १. सचित्त से सम्बन्ध हो अर्थात् जैसे हरी पत्तल में परोसा हुआ या हरी पत्तल से ढंका हुआ भोजन खा लेना। सचित्त सम्बन्धित अतिचार है। २. सचित्त से एकमेक, सचित्त सम्मिलित सचित्त द्रव्याश्रित, सूक्ष्म प्राणियों से मिश्रित, जिसको पृथक करना शक्य नहीं है वह सचित्त मिश्रित अतिचार है। ३. जो पदार्थ सचित्त हैं। सचित्त से चेतना सहित द्रव्य लिया जाता है। अतः चेतना सहित आहार को ग्रहण करना सचित्त आहार अतिचार है। ४. गरिष्ठ पुष्ट पदार्थ जो इन्द्रिय तथा काम विकार को उत्तेजित करने वाला आहार चौधा विचार है। ५. जो ठीक तरह से पका नहीं है, अर्द्धपक्व है, जिनका अग्नि पर पूरा पाक नहीं हुआ है। जो जला हुआ है उसे भी दुःपक्व कहते हैं। ऐसी वस्तु का भक्षण करना अधपका अतिचार है। इस प्रकार व्रत रक्षा के लिये इन उपर्युक्त अतिचारों को रोकना अत्यन्त आवश्यक हैं॥ १४ ॥ • अतिथि संविभाग व्रत के अतिचार हरित ढका पर को कहा, सचित्त रखा आहार । समय टाल ईर्षा करन, अतिथिव्रत अतिचार ॥१५॥ १४. सहचित्तं संबद्धं मित्रं दुःपक्वमभिषवाहारः। भोगोपभोग विरते रतीचारापंच परिवा ।। अर्थ - निश्चय ही सचित्त - जीव सहित कच्ची हरी वस्तु का आहार करना, सचित्त पदार्थ से सम्बन्धित वस्तु का आहार करना, सचित्ताचित्त मिश्रित आहार करना, दुःपक्व - कम या अधिक पका भोजन - आहार करना और गरिष्ठ - कामोद्दीपक आहार करना ये पांच भोगोपभोग व्रत के अतिचार हैं ॥ १४ ॥ STERSRRAHASHIRSHIRBASHIREReasRecemedERemessassusa धक्षणिन्ध श्रायकायार- ३०७

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