Book Title: Dharmanand Shravakachar
Author(s): Mahavirkirti Acharya, Vijayamati Mata
Publisher: Sakal Digambar Jain Samaj Udaipur

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Page 317
________________ 406RAL ENGRASARANAGUTARAKUANGALATACARREA •४. प्रोषधोपवास प्रतिमा का स्वरूप निजबल को न छिपाकर, चउपर्व दिवस प्रतिमास । ध्यान लीन तजे अशन चउ, प्रोषध प्रतिमा उसे जान ॥ ५॥ अर्थ - प्रत्येक महीने में २ अष्टमी और दो चतुर्दशी आती हैं। इन्हें पर्व कहते हैं। पर्व का अर्थ पोरी या गांठ होता है, गन्ने या बांस में ये ग्रन्थियाँ अंकुर उत्पन्न करती हैं। इसी प्रकार ये चारों दिवस धर्माकुर उत्पन्न करते हैं, इसीलिए पर्व के दिन कहलाते हैं। श्रावक अपने त्याग, व्रत, उपवास की भावना का स्मरण व व्यक्ति करण करते हैं। इन पर्यों में यथाशक्ति उपवास करना या प्रोषधोपवास करना प्रोषधोपवास प्रतिमा कहलाती है। इसमें प्रोषध और उपवास ये दो शब्द हैं। प्रोषध का अर्थ है दिन में एक भुक्ति-एक बार भोजन करना और उपवास का अर्थ है चारों प्रकार के (खाद्य, स्वाद्य, लेह्य, पेय) आहार का त्याग करना उपवास है। प्रोषध पूर्वक उपवास करना अर्थात् सोलह पहर का आहार-पान त्याग प्रोषधोपवास कहलाता है। यथा अष्टमी को प्रोषधोपवास ४. १. चतुरावर्त त्रितयश्चतुः प्रणामःस्थितो यथा जातः । सामायिको द्विनिषद्यस्त्रियोगशुद्धस्त्रिसन्ध्यमभिवंदी॥ १३९॥र. क. श्रा.! अर्थ - जो श्रावक प्रत्येक दिशा में तीन-तीन आवर्त एवं प्रत्येक आवों के अनन्तर एक-एक नमस्कार कर बाह्याभ्यंतर परिग्रह रहित मुनि के समान अवस्थितपद्यासन या खड्गासन से स्थित हो, मन, वचन, काय से शुद्ध हो तीनों संध्याओंकालों में ध्यान करता है वह सामायिकी प्रतिमाधारी कहलाता है। २. आर्त रौद्र परित्यक्त स्त्रिकालं विदधाति यः । __सामायिकं विशुद्धात्मा सामायिकवान मतः ।। अर्थ - चार प्रकार का आर्तध्यान और चारों प्रकार के रौद्रध्यान को त्याग कर, धर्मध्याननिष्ठ हो, मन-वचन-काय की शुद्धि पूर्वक त्रिकाल संध्याओं में सामायिक विधि धारण करता है, वह सामायिकवान धारी कहलाता है। यहीं सामयिक प्रतिमा है ।। ४ ।। ANAVARASALARARAS202AUALARARA ARARADIVARIA धर्मानन्द श्रावकाचार-३१५

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