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करना है तो सप्तमी को एकासन करे, नीरस आदि से भी शक्ति अनुसार करना, अष्टमी को उपवास करे तथा नवमी को पुनः एक भुक्ति करे यह प्रोषधोपवास कहा जाता है । इसे प्रोषधोपवास प्रतिमा कहते हैं । इन दिनों में यथाशक्ति आरंभ परिग्रह का त्याग कर जिन पूजा, भक्ति, स्तवन, दानादि धार्मिक क्रियाएँ करें । विषय-भोगों से विरक्त रहते हुए ध्यान - स्वाध्याय में समय यापन करना चाहिए ॥ ५ ॥
५. सचित्त त्याग प्रतिमा
साग बीज फल फूल दल जल सचित्त तजि देय ।
भर जीवन इन राग तजि, सचित्त त्याग प्रतिमा सेय ॥ ६ ॥
अर्थ - जो श्रावक आजन्म मूल, फल, पत्र, शाक, कोंपल, जल, बीज आदि को सचित्त अर्थात् बिना पकाये खाने का त्याग करता है उसके सचित्त त्याग प्रतिमा होती है। इससे दया, अहिंसा व्रत पालन होता है । जिह्वा इन्द्रियरसना की लोलुपता नष्ट होती है। उष्ण गरम सेवन करता है। अन्य भी फलादि जिन में बीज रहते हैं उन्हें कच्चे, बिना पकाये भक्षण नहीं करता । कारण बीज के अन्दर योनिभूत जीव होता है। इनका त्यागी दयामूर्ति कहलाता है ॥ ६ ॥ पर्वदिने चतुर्ष्वपि मासे - मासे स्वशक्ति मनिगुह्य |
५.
प्रोषध नियम विधायी, प्रणिधिपरः प्रोषधानशनः ॥ १४० ॥ र. श्री.
अर्थ - जो श्रावक प्रत्येक मास के चारों पर्वों - अष्टमी - चतुर्दशी के दिन अपनी शक्ति को नहीं छिपाकर प्रोषधोपवास करने का नियम पालन करता है वह प्रोषधोपवास प्रतिमाधारी कहलाता है ॥ ५ ॥
६. १. मूल फल शाक शाखा, करीरकन्द प्रसून बीजानि ।
नामानि योऽत्ति सोऽयं सचित्तविरतो दयामूर्तिः ॥ १४१ ॥ र. श्री. २. सच्चित्तं पत्त फलं छल्ली मूल किसलयं बीजं ।
जो णय भक्खहि प्राणी सचित्त विरओ हवे सोवि ॥ ...
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BANAHABASASACACÚSASASASAYAGAEKYN धर्मानन्द श्रावकाचार ३१६