Book Title: Dharmanand Shravakachar
Author(s): Mahavirkirti Acharya, Vijayamati Mata
Publisher: Sakal Digambar Jain Samaj Udaipur

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Page 319
________________ amasteRRERSRISASTERTREmsastrasarsamsuesasarasasrea •६. रात्रि भुक्ति त्याग जीवदया हित नित तजे, निशि भोज सातिचार। जघन्य कहे गृही दिन भोगन, षष्ठम प्रतिमा धार ।। ७॥ अर्थ - यद्यपि सामान्य श्रावक को भी रात्रि भोजन का त्याग रखना ही चाहिए, रखता भी है। परन्तु रोगादि आपत्तिकाल में जल, फल, दुग्ध, औषधि आदि ग्रहण करता है। अन्य कुटुम्बादि पीड़ितों को करवा भी देता है। परन्तु इस प्रतिमा का पृथक् विधान करने का अभिप्राय है कि अब वह निरतिचार, निर्दोष शुद्ध रूप में चतुर्विध आहार का नवकोटि से त्याग करता है। अर्थात् न खाता है, और न ही अन्य को ही खिलाता है, न अनुमोदना ही करता है। यहाँ प्रश्न उठता है, यदि कोई सौभाग्यवती महिला छठवीं प्रतिमा के व्रत ग्रहण करती है और उसे सन्तान लाभ हो जाय तो बालक को रात्रि में दुग्ध-पान करायेगी या नहीं ? कराये तो दोष लगेगा और नहीं पिलाये तो बालमरण संभव है ? प्रश्न उत्तम और यथार्थ है परंतु सत्य के ऊपर तथ्य होता है। रात्रि भोजन त्याग का अर्थ अहिंसा धर्म पालन है। दयाधर्म में अदया को स्थान कहाँ ? अतएव सन्तान रक्षण-प्राणरक्षण के लिये उसे स्तनपान कराना परमावश्यक है अन्यथा अनिवार्य मरण हो सकता है। अस्तु आचार्यों ने स्तनपायी बालक को दुग्धपान कराने की अनुज्ञा प्रदान की है। इस प्रतिमा को दिवामैथुनत्याग प्रतिमा भी कहते हैं। तथाऽपि उपर्युक्त विधि तो अवश्य पालन करना होगा ।। ७ ।। ...अर्थ - १. जो दयामूर्ति श्रावक कच्चे मूल, फल, शाक, शाखा, कोपल, कन्द, बीज, प्रसून आदि का भक्षण नहीं करता वह सचित्तत्याग प्रतिमाधारी है। २. सचित्त - जीव सहित पत्रों-पत्तों, फल, छल्ली-अधपके, मूल, कोपल, बीज आदि का भक्षण नहीं करता वह दयालु सचित्तत्याग पञ्चम प्रतिमाधारी है।॥ ६॥ VANKRZ521 A N TARUNARATARRANAR25202 धर्मानन्द श्रापकापर.-३१७

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