Book Title: Dharmanand Shravakachar
Author(s): Mahavirkirti Acharya, Vijayamati Mata
Publisher: Sakal Digambar Jain Samaj Udaipur

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Page 329
________________ BREASTEResasasasasastzaarsansarSRERAEREUSIRasasasasaekse • सन्यास का कर्तव्य अल्प अशन बच नींद युत, रलत्रय को धार । सन्याश्रम में मुनी, वहै उभय गुण भार |॥ १७ ॥ अर्थ - सन्यास आश्रम में प्रविष्ट होने वाला मुनि कहलाता है। यह अपने षट्कर्मों के निरतिपालनार्थ तथा छह उद्देश्यों - १. वैयावृत्ति करण, २. संयम पालन, ३. शरीर स्थिति अर्थ, ४. षट् कर्म पालन, ५. ध्यान करण, ६. प्राण धारण के निमित्त से अल्प शुद्ध ऐषणासमिति पूर्वक कालादि शुद्धि युत अल्प पाणिमात्र में नवधाभक्ति से आहार ग्रहण करता है। मित भाषण करता है, अर्थात् भाषा समिति पालन करता है, यथा काल मौन रहकर वचन गुप्ति साधना करता है। अल्प निद्रा लेता है शेष समय धर्मध्यान में लीन रहता है! प्रयत्न पूर्वक सावधान हो रत्नत्रय धारण करता है, वृद्धि करने में तत्पर रहता है । तप, ध्यानादि द्वारा रत्नत्रय साधना द्वारा आत्मा की प्रभावना करने में निरंतर संलग्न रहते हैं। अन्तरंग और बहिरंग दोनों प्रकार से आत्मशक्ति और जिन शासन प्रभावना करते हैं ।। १७ ।। १७.१. अष्टविंशतिकान् मूलगुणान्ये पान्ति निर्मलान् । उत्सर्गलिंगिनो धीरो भिक्षवस्ते भवन्त्यहो ।। २. भिक्षां चरन्ति येऽरण्ये बसन्त्यल्पं जिमन्ति च । बहुजल्पन्तिनो निद्रां कुर्वते नोत्तमतपोधनाः॥ ३. जिनलिंगधराः सर्वे रत्नत्रयात्मकाः। भिक्षवस्त्वृषिमुख्यां ये तेम्यो नित्यं नमोऽस्तु मे। __ अर्थ - १, जो परम दिगम्बर मुनिराज २८ मूलगुणों का विधिवत् पालन करते हैं, निर्मलता से धारण करते हैं, वे परम तपोनिधि उत्सर्गलिंगधारी भिक्षु कहलाते हैं। पाँच महाव्रत, पाँच समितियाँ, पंचेन्द्रिय निरोध, षट् आवश्यक और शेष ७ विशेष गुणों का पालन करते हैं। ये अट्ठाईस मूलगुण हैं। MaussueKSGERSasasaxsaszeasursaeREASUSARArasa धर्मानन्द श्रावकाचार-३२७

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