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SAEXERMARRIAGREEKesarsanasasursasaracOREANSaesamaste .क्षुल्लक का स्वरूप
इक सित पट कौपीन कटि, पीछी कमण्डलु पास। यथासमय क्षुर कर्म चउ, करे पर्व उपवास ॥ १४ ॥
अर्थ - ग्यारहवीं प्रतिमा धारी सफेद वस्त्र (दुपट्टा) और कोपीन (लंगोटी) धारण करता है। पीछी (मयूर पंख की) और कमण्डलु रखता है । यथा समय दो महीने अथवा चार महीने में क्षौर कर्म करता है। अर्थात् कैंची, उस्तरा आदि से सिर, दाढ़ी-मूंछ के बालों को निकालता है। चारों पर्व अष्टमी, चतुर्दशी
को उपवास करता है। विषय-कषायों से विरक्त उदासीन रहकर धर्मध्यान रत रहता है। कौपीन-दुपट्टा के त्याग की भावना रखता है ।। १४ ।। • ऐलक के पूर्व क्षुल्लक का और भी
श्रावक आंगन जहि कहे, धर्म लाभ चुप होय । निरुद्दिष्ट भोजन करे, क्षुल्लक श्रावक सोय ।। १५ ।।
...अर्थ - उत्कृष्ट प्रतिमाधारी, अपवाद लिंग क्षुल्लक अवस्था धारण करता है। इसे ही “वानप्रस्थ श्रावकाश्रम' नाम वाला कहा जाता है ।। १३ ॥ १४. स द्वेधा प्रथमः श्मश्वमूर्धजानपनयेत् ।
सित कोपीनं संव्यानः कर्तया वा क्षुरेण वा॥ अर्थ - वह दो प्रकार का है १. क्षुल्लक यह सिर, दाढ़ी, मूंछ के बालों को कैंची उस्तरादि से काटता है, कौपीन और उत्तरीय खण्ड वस्त्र रखता है।
श्रावक के घर पात्र में भोजन करता है। बैठकर भोजन करे। द्वितीय
२. स्वयं समुपविष्टोऽघात्पाणिपात्रेऽय भाजने । स श्रावक गृहं गत्वा पात्र पाणिस्तदंगणे॥
अर्थ - ऐलक स्वयं बैठकर पाणिपात्र-हाथ में अथवा पात्र में भी श्रावक के घर जाकर आहार लेता है। एक कौपीन मात्र रखता है ।। १४ ॥ Namasasaramseesamanasamasasarsanamusessmaavasa
धनिन्द्र श्रावकाचार- ३२५