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KANANABEAKI
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श्री सन्मति प्रभु जन्म दिन, चौबीस सो सत्तर । लिखी कृति आज समाप्त की, ऊदगाँव में सुखदाय ॥ ६ ॥
"इति धर्मानन्दग्रन्थ श्रावकाचार ग्रन्थ समाप्त ॥"
अर्थ - आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी जिनके गुरु मुनि कुञ्जर, समाधि सम्राट् आचार्य स्याद्वाद विद्या पारंगत, वादभ सिंह केसरी, वाचस्पति, न्याय शास्त्र वेत्ता, धर्म, व्याकरण ज्ञाता, पाण्डित्यपूर्ण गुरु श्री आदिसागर जी अंकलीकर थे। उन्हीं तपस्वी वीर दयानिधि का आचार्य पद मैंने (आचार्य महावीरकीर्ति ने इस मार्मिक, रहस्यपूर्ण, जीवनोपयोगी ग्रन्थ की रचना की है। इसकी परिसमाप्ति ऊदगाँव (कुंजवन) में वीर प्रभु जन्म जयन्ती २४७० में की है। अर्थात् चैत्र शुक्ला त्रयोदशी वीर जयन्ती २४७० में पूर्ण किया ।
प्रस्तुत "धर्मानन्द श्रावकाचार " टीका की प्रशस्ति
KASABASA
अथ श्री मूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारमणे श्री कुन्दकुन्दाचार्य परम्परायां दिगम्बराम्नाये परम पूज्य श्री अंकलीकर चारित्रचक्रवर्ती मुनि कुञ्जर सम्राट् प्रथमाचार्य श्री आदिसागरस्य पट्ट शिष्य परम पूज्य तीर्थभक्त शिरोमणि समाधि सम्राट् अष्टादश भाषा भाषी उद्भट विद्वान् आचार्य श्री महावीरकीर्तेः विरचितस्य "धर्मानन्द श्रावकाचारस्य" इयं हिन्दी टीका गणिनि आर्यिका विजयमत्या कृता धर्म नगरी इचलकरञ्जीनगरे महाराष्ट्र प्रान्ते परिसमाप्ता ।
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॥ शुभं भूयात् ॥
॥ जयतु श्री जिनवीर शासनम् ॥
VEM VEREN EREMUANABARAZAUSTA धर्मानन्द श्रावकाचार
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