Book Title: Dharmanand Shravakachar
Author(s): Mahavirkirti Acharya, Vijayamati Mata
Publisher: Sakal Digambar Jain Samaj Udaipur

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Page 322
________________ MARATREATMASABREAasamaAERERSasarSAGARMERSARKARIES •८. आरम्भ त्याग प्रतिमा जीवहिंसा के कार्य जे, सेवा कृषि वाणिज्य । तजत सकल आरंभ को, अष्टम प्रतिमा धार ॥ ९॥ - अर्थ - जिन कार्यों में अर्थात् व्यापारादि में अधिक हिंसा-जीवघात होता है उनका सर्वथा त्याग करता है । धनैषणा रहित होना । मात्र अपनी आजीविका पालनार्थ, न्याय पूर्वक, सौजन्य के साथ वित्तार्जन करता है। जिन असि, मषि, शिल्पादि कार्यों में विशेष हिंसा संभवित है उनका सर्वथा त्याग करता है। आशा, तृष्णा को सम्पुट करता है। लोभ-वाञ्छा संकुचित करने का उत्तरोत्तर प्रयास करता है। पूर्व संचित चल-अचल सम्पत्ति का अपने पुत्र-कलत्रादि को विभाजित कर स्वयं के लिए आवश्यकतानुसार कुछ अल्प भाग रख लेता है। पूजा, दान, औषधादि के लिए आवश्यक सम्पत्ति रखता है। लाभालाभ में समभाव रखता है। आवश्यकतानुसार अपना भोजनादि भी स्वयं तैयार कर सकता है। उतने पूर्ति मकान-कमरादि आवास स्थान रखता है । यह आठवीं आरम्भ त्याग प्रतिमाधारी कहलाता है॥९॥ ... लिया है वह समस्त स्त्रियों का त्याग कर मैथुन सेवन नहीं करता वह ब्रह्मचारी कहलाता है। २. मल बीजं मलयोनि गलन्मलं पूतिगंधि बीभत्सम् । पश्यन्नंगमनंगाद्विरमति यो ब्रह्मचारी सः ॥ १४३ ॥ र. क. पा. । अर्थ - जो श्रावक शरीर को मल से उत्पन्न हुआ, मल को उत्पन्न करने वाला मल को प्रवाहित करने वाला, दुर्गन्ध युक्त, ग्लानि जनक देखता हुआ काम सेवन से विरक्त होता है, सर्वथा स्त्री संभोग का त्याग करता है वह सातवीं ब्रह्मचर्य प्रतिमाधारी कहलाता है।। ८॥ ९. १. सेवाकृषि वाणिज्य प्रमुखादारम्भतो व्युपारमति। प्राणातिपात हेतोर्योऽसावारम्भ विनिवृत्तः ॥ १४४ ।।.., MaraeasasesaHARASATSAREERSawardsaucedesiksamasan धर्मानन्द श्राचकापार-३२०

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