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VABIERTARAKaratas AVANTURASASKARAR Hasirata की आसन आदि वस्तुएँ बिना देख शोधे बिछा देना दूसरा अतिचार है।
३. बिना देखी बिना शोधी जमीन पर मलमूत्र कफ, थूक आदि का त्याग करना तीसरा अतिचार है।
४. प्रोषधोपवास के दिन को एवं उसकी विधि तथा करने योग्य क्रिया आदि को भूल जाना चौथा अतिचार है।
५. प्रोषधोपवास में भूख-प्यास से पीड़ित होने से एवं शिथिलता आ जाने से पूर्ण आदरभाव नहीं रखना परन्तु उपेक्षा भाव से उसे पालना व छ: आवश्यकादि में अनादर करना पाँचवां अतिचार हैं।
इन पाँचों अतिचारों के नहीं लगाने से जीवरक्षा हो सकती है। और व्रत भी पूर्ण पल सकता है ।। १३ ।। •भोगोपभोग परिमाण के अतिचार
सम्बन्धित मिश्रित सचित्त वस्तु का आहार | तथा पुष्टिकर अधपका भोगादिक अतिचार ॥ १४ ॥
अर्थ - सचित्त से सम्बन्ध रखने वाला आहार, सचित्त से मिला आहार, सचित्त वस्तु का आहार, पुष्ट गरिष्ट आहार अच्छी तरह नहीं पकाया हुआ आहार ये भोगोपभोग परिमाण व्रत के अतिचार हैं।
भावार्थ - सचित्त का अर्थ जीव यानि चित्त सहित है वह सचित्त कहलाता है।
१३. अनवेक्षिता प्रमार्जितमादानं संस्तरस्तथोत्सर्गः । ____ स्मृत्यनुपस्थानमनादरश्च पञ्चोपवासस्य ॥ १९२ ॥ पु. सि.
अर्थ - बिना शोधे- देखे वस्तु का ग्रहण करना, चटाई आदि बिस्तर लगाना, बिनाभूमि शोधे मलमूत्र क्षेषण करना, उपवास की विधि भूल जाना और उपवास में अनादर भाव करना ये पाँच अतिचार हैं ।। १३ ।। SRHANIANASusxeaSUEResusawasanaskSITARIAsmusasara
धमनिन थातकापार- ३०६