Book Title: Dharmanand Shravakachar
Author(s): Mahavirkirti Acharya, Vijayamati Mata
Publisher: Sakal Digambar Jain Samaj Udaipur

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Page 313
________________ KALACACCCAGASASASAUKCAVASZCASASASAGASAGASACALLEANZ है वह स्वर्ग में उत्पन्न होता है और वहाँ से चयकर मनुष्यभव धारण कर अपने पुरुषार्थ के बल से महाव्रतों को अंगीकार कर मोक्ष सुख प्राप्त करता है ऐसा आचार्य महावीरकीर्ति महाराज ने कहा है || १७ ॥ * इति नवम अध्याय १७. इत्येतानतिचारानपरानपि संप्रत्यर्च्य परिवर्ज्य । 7 सम्यक्त्वव्रतशीलैरमलैः पुरुषार्थं सिद्धिमेत्यचिरात् ॥ १९६ ॥ पु. सि. अर्थ - उपर्युक्त समस्त अतिचारों तथा ओर भी इसी प्रकार अन्य भी अतिक्रम, व्यतिक्रमादिकों को त्याग कर जो अणुव्रतों पाँचों, चार शिक्षाव्रत और ३ गुणव्रतों का पालन करता है और निर्मल-निरतिचार सम्यक्त्व पालन व समाधि मरण पूर्वक मृत्यु का वरण करने वाला अतिशीघ्र सिद्धपद- मुक्तिपद को प्राप्त कर लेता है ॥ १७ ॥ - SAGAKAKAKAKALALALALALALAUREAERENUMELEAGAGAGAGAGNEA धर्माणिन्द्र श्रावकाचार ३११

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