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SAUSARSALASANAKARTABALARAHASAGANANASABABISA खाना नहीं देना नौकर को पेट भर भोजन न देकर खाने पीने में कमी करना खान-पान त्रुटि नामका अतिचार है।
इस प्रकार अहिंसाणुव्रत का पालन करने वाले दयालुओं को इन अतिचारों से अवश्य बचना चाहिये ये परिणामों को मलिन करने वाले हैं।। ४॥ • सत्याणुव्रत के अतिचार
मिथ्यासिख गोपित प्रकट, न्यास द्रव्य अपहार । मंत्र भेद कर कूट लिख पांच सत्य अतिचार ॥ ५ ॥
अर्थ - मिथ्या अर्थात् झूठा उपदेश देना किसी की गुप्त बात प्रकट करना, किसी का द्रव्य अपहरण करना, किसी के अभिप्राय को प्रकट करना झूठे लेख लिखना इस प्रकार सत्याणुव्रत के पांच अतिचार हैं। __ भावार्थ - मिथ्यासीख - जो धार्मिक क्रियायें आगमानुसार प्रसिद्ध हैं, उसके विषय में झूठा उपदेश देना कि अमुक क्रिया ठीक नहीं है अमुक क्रिया इस रीति से होना चाहिये एवं धर्म का स्वरूप ऐसा नहीं ऐसा है इस प्रकार असत्य कथन करके विपरीत मार्ग में लगाना मिथ्या सीख नामका अतिचार है।
२. गोपित प्रकट - एकान्त में जो बात स्त्री-पुरुष करते हैं उन्हें छिपकर
४. छेदन बंधन पीडनमतिभारारोपणं व्यतिचाराः। आहारवारणापि च स्थूल वधाद्व्युपरतेः पञ्च॥ २३४ ॥ श्लो. ५४,र. श्रा.।
अर्थ - स्थूल अहिंसाणुव्रत के पाँच अतिचार हैं - १. छेदना-नाक, कानादि अवयवों का छेदना, छिदवाना । २. बंधन - गाय, भैंस, बिडाल, कुत्ते मनुष्यादि को रस्सी-बेड़ी आदि से बांध रखना, बंध है। ३. पीड़न - कोड़े, बेंत आदि से पीटनामारना, ४, अतिभारारोपण - शक्त से अधिक भार लादना । ५. आहारवारण - पालित पशु, नौकर, दास-दासियों के समयानुसार आहार-पानी नहीं देना । ये अहिंसाणुव्रत के अतिचार हैं।।४।। WARRANTUANANAKARAABANATAKRAKALANAN ANALALALA
धर्मानन्द श्रावकाचार २९४