Book Title: Dharmanand Shravakachar
Author(s): Mahavirkirti Acharya, Vijayamati Mata
Publisher: Sakal Digambar Jain Samaj Udaipur

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Page 303
________________ SAKENNARARAANÁNATA ANAK KURSUNATUSURA इन अतिचारों से मर्यादित क्षेत्र से बाहर आरम्भ होने से त्रस स्थावर जीवों की हिंसा होती है। अतः अतिचारों से बचना चाहिए।॥ ९॥ • देशव्रत के अतिचार सीमा बाहर क्षेत्र में, भेजे कहे मंगाय। देशव्रत अतिचार ये, फेंके रूप दिखाय॥१०॥ अर्थ - सीमा से बाहर क्षेत्र में किसी को भेजना, शब्द करना, बाहर से कोई वस्तु मंगाना मर्यादा के बार कंकर आदि फेंकना, रूप दिखाना । इस प्रकार पांच देशव्रत के अतिचार हैं। भावार्थ - १. जो समय विशेष के लिये मर्यादा रक्खी हो उसके बाहर स्वयं तो नहीं जाना परन्तु अपने काम की सिद्धि हेतु किसी दूसरे आदमी को भेजना ये पहला अतिचार है। २. मर्यादा से बाहर तो जाना नहीं परन्तु खासकर ताली बजाकर आदि शब्दों के संकेत से अपना अभिप्राय यहीं बैठे-बैठे प्रकट कर देना यह दूसरा अतिचार है। ३. मर्यादा के बाहर स्वयं आज्ञा देकर कोई वस्तु मंगा लेना यह तीसरा अतिचार है। ४. मर्यादा से बाहर कंकड़, पत्थर आदि फेंककर अपने कार्य की सिद्धि करना चौथा अतिचार है। ५. मर्यादा के बाहर स्थित एवं जाने वाले पुरूषों को अपने शरीर रूप आदि दिखाकर किसी प्रयोजन का स्मरण दिलाना यह पाँचवां अतिचार है। इन सब क्रियाओं से व्रत में एकदेश दूषण आता है अतः देशव्रत पालने वाले पुरुष को इनसे बचना चाहिये ॥ १० ॥ ९. ऊर्ध्वाधस्तात्तिर्यग्व्यतिपाता:-क्षेत्रवृद्धिरवधीनाम् । विस्मरणं दिग्विरते रत्याशाः पञ्च मन्यन्ते ॥७३ ।। र. श्रा... #TAKASARNAVARRELLAARRREANACAKAELARASAKAN धनियत श्रावकाचार -३०१

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