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कभी-कभी बड़े दुष्परिणाम निकल बैठते हैं। बड़े-बड़े झगड़े भी हो जाते हैं, इसलिए हास्य मिश्रित भंड वचन बोलना पहला अतिचार है।
२. तन कुक्रिया - हास्य सहित भंड वचन बोलना, साथ ही शरीर से हाथ-पैर मुख आदि से कुक्रिया करना, जैसे बात करते-करते दूसरे के शरीर पर हाथ पटकते जाना, हँसते-हँसते लात मारना, पैसा लगान, किसी पर आँख चलाना, मुँह से उसे डराना, शरीर का किसी में धक्का देना आदि तन कुक्रिया अतिचार है।
३. बिना कारज विचार जैसे बैठे-बैठे किसी का मन में चिंतवन करना बिना प्रयोन किसी के लिये दुःखदायी वचन बोलना जिस क्रिया से अपने किसी प्रयोजन की सिद्धि नहीं होती है उसे करना जैसे रास्ता चलते-चलते वनस्पति रौंदना, पानी में पत्थर आदि फेंकना, पशु के लकड़ी आदि मार देना बिना कारज विचार तीसरा अतिचार है ।
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४. भोग वृद्ध - बिना प्रयोजन के वस्तुओं का संग्रह कर लेना बिना प्रयोजन भोग्य उपभोग्य पदार्थों को व्यवहार में लाते जाना भोगवृद्ध अतिचार है।
५. बकवासपन - व्यर्थ का बकवास करना, कुछ पुरुष ऐसा करते देखे जाते हैं कि वे राग-द्वेष वश बहुत धृष्टता के साथ अधिक बोलते हैं और बिना विचारे कुछ न कुछ बोलते जाते हैं, बिना प्रयोजन दूसरों के झगड़े में घुस पड़ते और वहाँ पर बड़बड़ाते हैं । इस प्रकार बिना प्रयोजन बोलना बकवासपन अतिचार है ।
जिनसे किसी इष्ट की सिद्धि नहीं होती और व्यर्थ कर्मबंध बंधता है ऐसे अतिचारों से अनर्थदण्डव्रतियों को दूर रहना चाहिए ॥ ११ ॥
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११. कंदर्प कौरकुच्यं मौखर्यमतिप्रसाधनं पञ्च ।
असमीक्ष्य चाधिकरणं व्यतीतयोऽनर्थदण्डकृ द्विरतेः ॥ ८१ ॥ र. क. श्री. अर्थ - अनर्थदण्ड व्रत के पाँच अतिचार हैं- १. कंदर्प, २. कौत्कुच्य, LAGAKAKAKAMALAVASARAVANANTUNYANAUAUSGABAEAGNSKENER
धर्मानन्द श्रावकाचार ३०३
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