Book Title: Dharmanand Shravakachar
Author(s): Mahavirkirti Acharya, Vijayamati Mata
Publisher: Sakal Digambar Jain Samaj Udaipur

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Page 304
________________ BasaasasuSAEXERSARNAMATKaamsaeKINERSAREERHasasarsana • अनर्थदण्ड व्रत के अतिचार भण्ड वचन तन कुक्रिया, कारज बिना विचार | भोग वृद्धि बकवासपन, अनर्थ दण्ड अतिचार ॥११॥ अर्थ - हास्यादि सहित भंड वचन बोलना, काय से कुचेष्टा करना, • बिना प्रयोजन मन-वचन-काय के व्यापार को बढ़ाते जाना, प्रयोजन से अधिक भोगों का उपार्जन ग्रहण करना और लड़ाई-झगड़ा वाले वचन बोलना ये अनर्थदण्ड व्रत के पाँच अतिचार हैं। भावार्थ - कुछ पुरुष बिना प्रयोजन बात करते-करते हँसी करने के साथ-साथ बुरे वीभत्स श्रृंगारिक आदि शब्दों का प्रयोग करते रहते हैं प्रत्येक बात में गाली निकाल बैठते हैं। इस प्रकार हास्य सहित भंड वचन बोलने से ------- - ------------ ..अर्थ - दसों दिशाओं में जीवन पर्यन्त के लिए गमनागमन की सीमा की जाती है। उसका उल्लंघन करना अर्थात् कम-अधिक करना अतिचार है। अतः ये पाँच हैं - १. प्रमाद से ऊपर - ऊर्ध्वदिशा में की हुई मर्यादा का उल्लंघन करना, २. अधोगति की सीमा कम-अधिक करना, ३. तिर्यक्-तिरछे गमनागमन सीमा का उल्लंघन करना, ४. क्षेत्र की वृद्धि करना लोभवश और ५. की हुई मर्यादा को प्रमादवश भूलनाविस्मृत करना ये पाँच दिग्व्रत के अतिचार हैं ॥ ९॥ १०.प्रेषण शब्दानयनं रूपाभिव्यक्ति पुद्गलक्षेपौ । देशावकाशिकस्य व्यपदिश्यन्तेऽत्ययाः पञ्च ॥ ९६ ॥र. क. पा. ।। अर्थ - देशव्रत में की हुई मर्यादा के बाहर किसी व्यक्ति या वस्तु को भेजना, २. की हुई मर्यादा के बाहर की वस्तु मंगाना, ३. मर्यादा के बाहर किसी को संकेत करने को खखारना, खांसना आदि शब्द करना, ४, मर्यादा के बाहर रहने वाले को अपना रूप आकृति दिखलाकर अपना अभिप्राय जताना और ५. मर्यादा के बाहर कंकड़, पत्थर आदि फेंककर अपना अभिप्राय प्रकट करना ये पांच देशावकाश व्रत के अतिचार हैं। इनका त्याग करना चाहिए ।। १०॥ 128G NARANAKARARANANLABANATATZEANASARANASANA धर्मनिन्द श्रावकाचार -४३०२

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