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ALANA URA BARRERA AXBORSARE RAAK लेना चाहिए। ये समरंभ-समारंभ और आरंभ तीनों ही मन से किये जाते हैं, तीनों ही वचन से किये जाते हैं और तीनों ही काय से किये जाते हैं, इस प्रकार ये तीनों, तीनों योगों से होते हैं और उनके ये नौ भेद हो जाते हैं। नौ प्रकार के समरंभ आदिक स्वयं किये जाते हैं, दूसरों से कराये जाते हैं और उनकी अनुमोदना की जाती है इस प्रकार कृत-कारित-अनुमोदना के भेद से सत्ताईस भेद हो जाते हैं। ये सत्ताईस भेद क्रोध से होते हैं, मान से होते हैं, माया से होते हैं और लोभ से होते हैं इस प्रकार चारों कषायों से गुणा करने से एक सौ आठ भेद हो जाते हैं इन एक सौ आठ भेदों से जीवहिंसा आदि पाप लगते हैं सो ही मोक्षशास्त्र में आचार्य उमास्वामी ने लिखा है
“आद्यं सरंभसमारंभारंभयोगकृतकारितानुमतकषाय विशेषैस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः।" ___ इसके सिवाय पापों के एक सौ आठ भेद और प्रकार से भी हैं। यथा - क्रोध, मान, माया, लोभ इन चारों कषायों से काययोग के द्वारा स्वयं किये हुए भूतकाल सम्बन्धी पाप । इन्हीं चारों कषायों से काययोग के द्वारा दूसरों से कराये हुए भूतकाल सम्बन्धी पाप तथा इन्हीं कषायों से काययोग के द्वारा अनुमोदना किये हुए भूतकाल सम्बन्धी पाप इसी प्रकार भूतकाल सम्बन्धी पाप बारह प्रकार के हुये । इसी प्रकार भूतकाल सम्बन्धी पाप बारह प्रकार के वचन योग द्वारा तथा बारह प्रकार मनोयोग द्वारा होते हैं, इस प्रकार कुल छत्तीस प्रकार के भूतकाल सम्बन्धी पाप, छत्तीस प्रकार वर्तमान काल सम्बन्धी पाप और छत्तीस प्रकार भविष्यत्काल सम्बन्धी पाप होते हैं, इस प्रकार एक सौ आठ हिंसा के भेद हो जाते हैं। ___ संसारी जीव हमेशा प्रमाद और कषाय के आधीन रहते हैं तथा उस स्थावरों के भेद से बारह प्रकार के जीवों की मन-वचन-काय, कृत-कारितअनुमोदना के द्वारा एक सौ आठ भेद रूप पाँचों पापों का आस्रव व बंध करते NASASRMATERSurNasamanizeramanaSaa manarscenesa
धर्मानन्द श्रावकाचार-२०७