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SAVARICABAKANANKUASABASATANASATAN ANALARARLARA • इसका निर्णय
भोजनादि इन्द्रिय विषय एक भोग सो भोग। बार-बार के योग्य जो साहि कहा उपभोग १३ ॥
अर्थ - जो पंचेन्द्रिय के विषय एक बार भोगने में आते हैं उन्हें भोग कहते हैं। जो वस्तु बार-बार भोगने में आवे उन्हें उपभोग कहते हैं ॥१३ ।। • इसका दृष्टान्त
भोजनपान इलायची, इत्यादिक तो भोग ।
वस्त्राभूषण आदि की वस्तु जानि उपभोग ॥ १४ ॥ अर्थ - भोजन, पान, इलायची इत्यादि वस्तु का एक बार ही सेवन किया जाता है इसलिए इसे भोग कहते हैं तथा वस्त्र, आभूषण, कुर्सी, कलम आदि वस्तुयें बार-बार भोगने में आती है इसलिए उनको उपभोग कहते हैं ।। १४ ।।
.. में असंयत रहता है। इस प्रकार यह पाँचवां गुणस्थान संयता-संयत कहा है। इससे सिद्ध है कि स्थावर काय के जीवों की हिंसा का अवतार होने से पूर्ण अहिंसा नही होती । इस प्रकार आगम से वस्तु तत्त्व का यथार्थ स्वरूप अवगत कर शक्ति अनुसार उस स्थावर दोनों प्रकार की हिंसा के त्याग का प्रयत्न करना चाहिए । निष्प्रयोजन स्थावर हिंसा से भी बचे॥१२॥
१३. भुक्त्वा परिहातव्यो, भोगो भुक्त्वा पुनश्च भोक्तव्यः । ___ उपभोगोऽशनवसन प्रभृतिः पञ्चेन्द्रियो विषयः ।। ८३ ।। र. क. श्रा.
अर्थ - संसार में दो प्रकार के पदार्थ हैं - १. कुछ ऐसे हैं जिनका मनुष्य एक ही बार सेवन कर सकता है यथा भोजन, पान, तैल, उबटन आदि। दूसरे प्रकार के वे हैं जो बार-बार उपयुक्त हो सकते हैं यथा वस्त्र, शैया, स्त्री, आभूषण, मकान, दुकानादि । प्रथम प्रकार के पदार्थों को भोग और द्वितीय श्रेणी के पदार्थ उपभोग कहलाते हैं। अर्थात् जो पदार्थ एक बार भोगने में आवे वह भोग है और बार-बार भोगे त्यागे जाते हैं उसे उपभोग कहते हैं। यही दोनों में अन्तर है।। १३ ।। GARASARASAAN NARAHAVACHACARANYALARA
धर्मानपद श्रावकाचार-२५९