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* अथ अष्टम अध्याय * • सल्लेखना का लक्षण
तन कषाय कृष करन का है सल्लंखन नाम । मृत्यु समय श्रावक करें, विधिवत् शुभ परिणाम ॥१॥
अर्थ - तन को और कषाय को कृष करने का नाम सल्लेखना है । मृत्यु के समय श्रावक निरन्तर शुभ परिणामों के हो जाने से सल्लेखना की भावना भानी चाहिए। ___ भावार्थ - सत्+लेखना = सल्लेखना । सत् = सम्यक् प्रकारेण - ‘स्वर्गादिफल निरपेक्षत्वेन' - लेखना = काय कषाययोः कृषीकरणं इति सल्लेखना अर्थात् स्वर्गादि फल की इच्छा से रहित होकर समताभाव पूर्वक कषाय और शरीर के क्षीण करने को सल्लेखना कहते हैं। सल्लेखना के दो भेद' काय सल्लेखना और कषाय सल्लेखना।
१. उपवास आदि एवं काय क्लेश के द्वारा शरीर मात्र को कृष करना काय सल्लेखना है। ३. कषायों का कृश करना कषाय सल्लेखना है। मोक्षमार्ग में दोनों ही सल्लेखना आवश्यक व हितकारी है। कारण शरीर के त्याग के साथ-साथ कषायों का त्याग भी अत्यन्त आवश्यक है, कषायों के त्याग के बिना कभी भी समता भाव जागृत नहीं हो सकता और समता भाव के बिना समाधि की सिद्धि नहीं हो सकती है ॥ १ ॥
१. "मारणांतिकी सल्लेखनां जोषिता।" २२ ॥ सू. अ. ७. ॥
अर्थ - व्रती उदासीन श्रावक अपने मरणकाल आने पर प्रीतिपूर्वक सल्लेखना समाधिमरण करता है।
-उपुर्यक्त सूत्र की व्याख्या - स्व परिणामोपात्तस्यायुष इन्द्रियाणां वलानां.. LANACAVACUUNAUTAKARARANAKARARAANASASABER
धमतिन्द श्रावकाचार-२७४