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VARSASCASARANASAVARUSARANASAEALUSAKARUNARANASABA • कायकृष की विधि
क्रम-क्रम भोजन त्यागि रख दूध छाछि खरपान ।
उष्ण तोय तजि शक्ति सम, कृषे काय शुभ ध्यान ॥ ८॥ अर्थ - कषाय आदि को कृष करने के बाद क्रम से भोजन छोड़कर दूध आदि बढ़ावें फिर दूध आदि छोड़कर छाछ को बढ़ावें फिर छाछ को छोड़कर गर्म जल बढ़ावें फिर जल को छोड़कर शक्ति के अनुसार उपवास करें तथा काय को कृष करता हुआ आत्म ध्यान में लीन होवे । क्योंकि आत्म स्वरूप चिन्तन व आत्मानुभव ही प्रथम सल्लेखना का उद्देश्य है।
भावार्थ - सल्लेखनाधारी काय को कृष करने के लिए प्रथम यह विचारें अब इस पर्याय में मुझे अल्प समय रहना, आयु समाप्त होने को है इसलिये रसों की गृद्धता छोड़कर रसना इन्द्रिय की लालसा छोड़कर यदि आहार का त्याग करने में उद्यत नहीं होऊँगा तो व्रत, संयम, धर्म, यश परलोक इनको बिगाड़कर कुमरण करने संसार में ही परिभ्रमण करूँगा | ऐसा निश्चय करके अतृप्ति करने वाला आहार का त्याग करने के लिये कभी उपवास कभी बेलातेला कभी नीरस आहार करना, कभी अल्प आहार करना फिर क्रम से आहार का त्याग कर दूध आदि पीना, फिर दूध का त्याग कर छाछ ग्रहण करना फिर छाछ छोड़कर गर्म जल ग्रहण करना फिर गर्म जलादि का त्याग कर शक्ति' अनुसार उपवास करते हुये शुभ धर्मध्यान रूप होकर कायकृश कर शरीर को त्यागना सल्लेखना है । इस प्रकार कायकृश सल्लेखना की विधि हुई ॥ ८॥
८. आहारं परिहाप्य क्रमशः स्निग्धं विवर्द्धयेत्पानम् ।
स्निग्धं च हापयित्वा खरपानं पूरयेत्क्रमशः ॥ १२७ ॥ खरपान हापनामपि, कृत्वा कृत्वोपवासमपि शक्त्या । पञ्च नमस्कार मनास्तनुं त्यजेत्सर्वयत्नेन॥१२८॥र. क. पा...
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धर्मानन्द नायकाचार-~२८१